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________________ refer to ७ ० ६ उ० सू० ६ सूर्यनिरूपणम् १५१ योजनस्य तिर्यक् तापयतः एतच्च सर्वोत्कृष्ट दिवसे चक्षुःपर्शापेक्षयाऽव सेयम्, अथ सूर्यवक्तव्यवतानिरूपणानन्तरं सामान्येन ज्योतिष्कवक्तव्यतां परूपयति - अंतो णं संते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसरियगहगणणक्खतताराख्वा, ते णं भंते! देवा किं उड्डोवा ? ' हे भदन्त । मानुषोतरस्य मनुष्यलोकसीमा कारकस्य पर्वतस्य अन्तः अभ्यन्तरे ये चन्द्रग्रहगणनक्षत्र तरारूपादेवाः सन्ति हे भदन्त । ते खलु देवाः किम् ऊर्ध्वोपपन्नाः ? ऊर्ध्वलोकोत्पन्ना भवन्ति ? भगवानाह - 'जहा जीवाभिगमे तदेव निरवसेसं जाव उक्को अपने विमान के ऊपर एक सौ योजन प्रमाण ही तापक्षेत्र है अतः ऊपर में सूर्य का तापक्षेत्र एक सौ योजन प्रमाण कहा गया है। सूर्य से आठ सौ योजनतक नीचे में भूतल है - भूतल से एक हजार योजन मे अधोलोग्राम हैं । इन सब को उद्योतित करने से यहां नीचे में सूर्य का क्षेत्र १८ सौ योजन प्रमाण कहा गया है । तथा जो तिरछे में सूर्य का तापक्षेत्र कहा गया है वह सर्वोत्कृष्ट दिवस में चक्षुः स्पर्श की अपेक्षा से कहा गया है । अब सूर्यविषयक वक्तव्यता के निरूपण के अनन्तर सूत्रकार सामान्य रूप से ज्योतिष्कों की वक्तव्यता की प्ररूपणा करते हैं - इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा हैं - (अंतो णं भते । माणुसुत्तरस्त पव्वयस्स जे चंदिम सूरिय- गहगण-मक्खत्त-तारारूघा, तेणं भंते ! देवा किं उड्रोदवशगा ) मानुषोत्तर पर्वत के जो चन्द्र, सूर्य ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप देव हैं - हे भदन्त ! वे देव क्या उर्ध्वलोक में उत्पन्न हुए हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( जहा जीवाभिगमे तहेव તેથી ઉપર સૂર્યનું તાપક્ષેત્ર ૧૦૦ ચેાજન પ્રમાણુ કહેવામાં આવ્યુ છે. સૂર્યથી આઇસેા ચેાજન સુધી નીચે ભૂતલ છે અને ભૂતલથી ૧૦૦ ચેાજન નીચે અધે. લેાકશ્રામ છે. સૂર્ય તે બન્નેને ઉદ્યોતિત કરે છે. તેથી તેમનુ તાપક્ષેત્ર નીચે ૧૮૦૦ ચેાજન પ્રમાણુ કહ્યુ છે. તથા સૂર્યનું જે તિરથ્થું તાપક્ષેત્ર કહ્યુ છે, તે સર્વોત્કૃષ્ટ દિવસમા ચક્ષુ સ્પર્શીની અપેક્ષાએ કહ્યુ છે. આ રીતે સૂર્યની વક્તવ્યતાનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર ચેતિષિકાની પ્રરૂપણા કરે છે. આ વિષયને अनुसक्षीने गौतम स्वाभी महावीर प्रभुने नीचे प्रमाणे प्रश्न पूछे छे - " तोणं भते | माणुत्तरस्स पव्त्रयस्स जे च दिम सूरिय- गहगण-णक्खन-त राहवा, तेणं भंते ! देवा कि उड्ढोववन्नगा १ ) अहन्त ! भानुषोत्तर पर्वतना ने यन्द्र, સૂર્ય, ગ્રહગણુ, નક્ષત્ર અને તારારૂપ દેવા છે, તેએ શું ઉર્ધ્વલેાકમાં ઉત્પન્ન થયેલા છે ?
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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