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________________ १४८ भगवतीसूत्र र्थमेव शिष्यहिताय प्रकारान्तरेणाह-'जंबुद्दीवे णं अंते । दीवे सूरियाणं किं तोए खेत्ते किरिया कज्जइ, पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ' अणागए खेने किरिया कज्जइ ? ' हे भदन्त ! जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे सूर्ययोः किम् अतीते व्यतिक्रान्ते क्षेत्र क्रिया क्रियते ? अवभासनादिका क्रिया भवति ? किंवा प्रत्युत्पन्ने वर्तमाने क्षेत्रो क्रिया क्रियते भवति ? किं वा अनागते क्षेत्रे क्रिया क्रियते ? भवति ? भगवानाह - 'गोयमा ! नो तीये खेत्ते किरिया कज्झइ. पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्झइ, णो अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ ' हे गौतम ! नो अतीते व्यतिक्रान्ते क्षेत्रे सूर्य अतीत और अनागतक्षेत्रको भालित-प्रकाशित नहीं करते हैंकिन्तु प्रत्युत्पन्न क्षेत्र को ही प्रकाशित करते हैं। इसी तरहसे वे यावत् छह दिशाओं को नियम से अवभासित करते हैं ।उक्तार्थ को ही अय शिष्य के हित के लिये प्रकारान्तरले सूत्रकार कहते हैं-इल में गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा (जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरियाणं किं तीए खेत्ते किरिया कज्जइ, पखप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ, अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ) हे भदन्त ! जंबूद्वीप नाम के द्वीपमें दोनों सूर्यों की क्या अतीत क्षेत्र में क्रिया-अवभासनादिरूप होती है ? या प्रत्युत्पन्नक्षेत्र में अवभासनादिरूप क्रिया होती है ? या अनागतक्षेत्र में अवभासनादिरूप क्रिया होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोथमा) हे गौतम ! (नो तीये खेत्ते किरिया कज्जइ एडप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ, णो अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ) वे दोनों सूर्य अतीतक्षेत्र में अवभाસમજી લેવું જોઈએ કે તે બને સૂર્ય અતીત અને અનાગત ક્ષેત્રને ભાસિત (પ્રકાશિત) કરતા નથી, પણ વર્તમાન ક્ષેત્રને જ ભાસિત કરે છે. એ જ પ્રમાણે તેઓ (થાવત્ ) છ દિશાઓને અવશ્ય અવભાસિત કરે છે. એ જ વાતને હવે સૂત્રકાર શિષ્યના હિતને ખાતર બીજી રીતે પ્રકટ કરે છે. गौतम स्वामी महावीर प्रभुने पूछे छे 3-(बुद्दीवेणं भंते ! दीवे सूरि. याणं कि तीर खेते किरिया कजइ, पडुपन्ने खेते किरिया कज्जइ, अणागए खेत्ते किरिया कन्जइ ? ) महन्त ! भूदी नामन द्वीपwi भन्ने सूर्य नी शु અતીત ક્ષેત્રમાં કિયા (અવાસન આદિરૂપ ક્રિયા) થાય છે કે વર્તમાન ક્ષેત્રમાં અવભાસન આદિ રૂપ કિયા થાય છે? કે અનાગત ક્ષેત્રમાં તે ક્રિયા થાય છે ? महावीर प्रभुन। उत्त२-" गोयमा ! " उ गीत ! ( नो तीये खेत्ते किरिया कज्जइ, पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ, णो अणागए खेत्ते किरिया कजइ)
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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