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________________ भगवती सूत्रे ११४ णिज्जेणं भंते ! कम्से कई परीसहा समोयरंति ? हे भदन्त | चारित्रमोहनीये खल्लु कर्मणि दिप कति परीपहाः समवतरन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा । सत्त परीसहा समोयरंति' हे गौतम ! चारित्रमोहनीये कर्मणि विषये सप्त परीपहाः समत्रवरन्ति, तानेवाह - 'तं जहा - "अरई, अचेल, इत्थी, निसीहिया, जायणा य अक्को से । सक्कारपुरक्कारे चरितमोहंमि सत्तेते ॥ ५९ ॥ तद्यथा - अरतिः १, अचेल २, स्त्री३, नैपेधिकी, ४, याचना च ५, आक्रोशः, सत्कारपुरस्कारश्चारित्रमोहनीये सप्त एते परीपदा भवन्ति, तत्र च अरति परीपहो रतिमोहनीये तज्जन्यत्वात्, अचेलपरीपहो जुगुप्सामोहनीये लज्जापेक्षया, स्त्रीपरीषदः पुरुषवेद मोहनीये, तच्चतस्तस्य स्याद्यभिलापरूप दर्शन परीषह का समावेश दर्शनमोहनीय कर्म में कहा गया है । अथ गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( चरितमोहणिज्जेणं भंते । कम्मे कह परीसहा समोरंति ) हे भदन्त ! चारित्रमोहनीय कर्म में कितने परीषहों का समरतार होता है उत्तर में प्रभु कहते हैं - (गोमा ) हे गौतम ! ( सत्त परीसहा समोरंत) चारित्रमोहनीय कर्म में सात परीषहों का समावेश होता है । जो इस प्रकार से हैं - ( आरती अचेल इत्थी निसीहिया जायणा य अकोसे, सकारपुरकारे चरित्तमोहंमि सत्तेते) अरति, अचल, स्त्री, नैषेधिकी, याचना, आक्रोश और लत्कार पुरस्कार इनसे अरति परिषद का समवतार मोहनीय में होता है, क्योंकि अरति - अरतिमोहनीयजन्य होती है। अचैलपरी पह लज्जा की अपेक्षा से जुगुप्सामोहनीय में समाविष्ट होता है। स्त्रीपरीषह पुरुषवेदमोहनीय में, स्त्री की अपेक्षा से पुरुषपरीषह स्त्रीवेदमोहनीय में, क्यों कि पुरुषप गौतम स्वाभीना प्रश्न - " चरित्तमोह णिज्जेणं भंते! कम्मे कह परीसहा समोर ति ? " डे लहन्त ! यारित्रमोहनीय मां डेटवा परिषडोना સમાવેશ થાય છે ? " महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! " हे गौतम! सत्त परीसहा समा य ंति ” यारित्रभेोडनीय मां नीचे प्रमा सात परीषहोना समावेश थाय छे–“ अरती, अचेल, इत्थी, निसीहिया जायणा य अक्कोसे सक्कारपुरक्कारे चरित्तमोहमि सत्ते ते ” अरति, अग्रेस, स्त्री, नषेोधडी, यायना, भागेश अने સત્કાર પુરસ્કાર. આ સાત પરિષહેામાંના-અરિત પરીષદ્ધના સમાવેશ માહ નીયમાં થાય છે કારણ કે અતિ અતિમહનીયજન્ય હાય છે. અૌલ પી. ષહંના સમાવેશ લજજાની અપેક્ષાએ જુગુપ્સામેાહનીયમાં થાય છે. ઔપરીષહના પુરુષવેદ મેાહનીયમાં અને સ્રીની અપેક્ષાએ પુરુષ પરીષહના સ્ત્રીવેદ માહ નીયમાં સમાવેશ થાય છે. કારણ કે પુરુષ પરીષહ શ્રી આદિની અભિલાષા ८८
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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