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________________ भगवती सूत्रे मोहनीयक्षयोपशमादेवध्यम्, ज्ञानपरीपहस्तु मत्यादिज्ञानावरणे समवतरति, गौतमः पृच्छति - ' वेयणिज्जेणं भंते । कम्मे कई परीसहा समोरंति ? ' हे मदन्त ! वेदनीये खलु कर्मणि कति परीपहाः समवतरन्ति ? भगवानाह - ' गोयमा ! एक्कारस परीसहा समोयरति ' हे गौतम | वेदनीये कर्मणि एकादश परीषदाः समवतरन्ति तानेव एकादश परीपहानाह - ' तं जहा - " पंचैव आणुपुपि चरिया सेज्जा व य रोगे य । तण फास जल्ल मेव य, एक्कारसवेय णिज्जं मि ॥५९॥ तद्यथा - पञ्च एव आनुपूर्वी, शय्या, वधश्व रोग, तृणस्पर्शः, मळमेव एकादश वेदनीये, तत्र कर देना चाहिये - सो यह कथन चारित्रमोहनीय के क्षयोपशम आदि की अपेक्षा से जानना चाहिये। क्यों कि सहन करना आदि रूप जो आचरण होता है वह चारित्रमोहनीय कर्म के क्षयोपशमादि से होता है | ज्ञानपरीषह मत्यादिज्ञानावरण में समाविष्ट होता है । अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - (वेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइपरीसहा समोयति) हे भदन्त ! वेदनीय कर्म में कितने परीषहों का समावेश होता ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं - ( गोयमा) हे गौतम ! (एक्कारसपरसहा समोरंति ) वेदनीय कर्म में ११ ग्यारहपरीपहों का समावेश होता है - अर्थात् वेदनीय कर्म के उदय में ११ परीपह होते हैं - ( तं जहा ) जो इस प्रकार से हैं - ( पंचेच आणुपुच्ची, चरिया, सेज्जा, वहे रोगे य तण फासजलमेव य एक्कार सवेयणिज्जंमि ) पांच आनुपूर्वीक्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण और दंशमशक ये पांच परीषह, तथा चर्या, शय्या, वध, रोग तृष्णस्पर्श, एवं मल ये ११ परीपह वेदनीय कर्म में य, ११२ કરવા જોઇએ ” આ કથન ચારિત્રમાહનીયના ક્ષાપશમ આદિની અપેક્ષાએ થયુ' છે એમ સમજવુ.... કારણ કે સહન કરવા આદિ રૂપ જે આચરણુ થાય છે તે ચારિત્ર માહનીય કના ક્ષયાપશમ આદિથી થાય છે. જ્ઞાનપરીષહના સમાવેશ મળ્યાદિ જ્ઞાનાવરણમાં થાય છે. गीतभस्वाभीते। प्रश्न- " वेयणिज्जेण भंते ! कम्मे कह परीसहा समोयरंति ? ” हे लहन्त ! रेहनीय मां टला परीषहोना समावेश थाय छे ? महावीर अलुतो उत्तर- 'गोयमा ! हे गौतम । “ एक्कारसपरीसा समोर ति " वेहनीय भ ११ परीषहोना सभावेश थाय छे-कोटले ! वेहनीय उभंना उदयभां ११ परीषहे। होय छे " त' जहा ' તે ૧૧ પરીષહો नीचे प्रमाणे छे-“ पंचेव आणुपुव्वी, चरिया, सेज्जा, वहे य, रोगे य, तणफासजलमेव य एक्कारसवेय णिज्जंमि ” पडेलां पांय परीषडो भेटले } क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ट्णु रमने शमश तथा थर्यो, शय्या, वध, रोग, तृथुस्यश' "
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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