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________________ प्रमेयचन्द्रिका टो० श० टे उ०८ सू० ५ कर्म प्रकृति - परीषद्दवर्णनम् 1 यति, नो तस्मिन् समये उष्णपरीषदं वेदयति, यस्मिन् समये उष्णपरीषद्दं वेदयति, नो तस्मिन् समये शीतपरी पहं वेदयति, यस्मिन् समये चर्यापरीपदं वेदयति, नो तस्मिन् समयेनैवेधकीपरी पहं वेदयति, यस्मिन् समये नैषेधिकीपरीपक्षं वेदयति, नोतस्मिन समये चर्यापरीषहं चेदयति । एवम् अष्टविधबन्धकस्यापि । पवििधवन्धकस्य खलु भदन्त | सरागछद्मस्थस्य कति परिपहाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम । चतुर्दश परीपहा: पह होते हैं । (वीसं पुणवेएह ) परन्तु वेदन जीव के एक साथ बीस परीषहों का होता है । (जं समयं सीयपरीसहं वेएइ, णो तं समयं उसिण परीसहं वेएड़, जं समयं उसिणपरीसहं वेएद, णो तं समयं सीयपरीसहं dus, जं समयं चरियापरीसहं वेएइ, णो तं समयं निसीहियापरीसहं des ) जिस समय शीतपरीषह का वेदन होता है, उस समय उष्णपरीषह का वेदन नहीं होता है, तथा जिस समय उष्णपरीषह का वेदन होता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं होता है । जिस समय चर्यापरीषह का वेदन होता है उस समय नैषेधिकी परीषह का वेदन नहीं होता है और जिस समय नैषेधिकी परीपह का वेदन होता है उस समय चर्या परीषह का वेदन नहीं होता है । ( एवं अट्ठविहधगस्त वि) इसी तरह से आठ प्रकार के कर्म का बंध करने वाले जीव के भी बाईस परीषद होते हैं । परन्तु वेदन २० बीस का ही होता है एक साथ । (छग्विहब धगस्स णं भंते! सरागछ उमत्थस्स कह परीसहा पण्णत्ता ) हे भदन्त ! छह प्रकार के कर्मों का बंध करने वाले सराग સાત પ્રકારના કમના મધ કરનાર જીવને ખાવીશ પરીષહા સહન કરવા પડે छे (वीसं पुण वेएइ ) पशु मे४ साथै २० परीषडोनुं भवने वेहन ४२ पडे ( जं समय सीयपरीसह वेएद्द, णो त समय उसिणपरीसह वेएइ, ज समयं उस्रिण परीसह वेएइ, णो त समय सीयपरीसह वेएइ, ज' समयं चरिया परीसह वेes, णो त समय निसीहियापरीसह वेपइ ) ने सभये शीत પરીષહનું વેદન થાય છે, તે સમયે ઉષ્ણુપરીત્રહનું વેદન થતું નથી, તથા જે સમયે ઉષ્ણુપરીષહતુ વેદન થાય છે, તે સમયે શીતપરીષહતું વેદન થતું નથી, તથા જે સમયે ચર્ચાપરીષહનું વેદન થાય છે, તે સમયે નૈષેધિકી પરીષહનું વેદન થતુ નથી, અને જે સમયે નૈષેધિકી પરીષહતુ વેદન થાય છે, તે સમયે यर्यापरीषडनु वेन थतुं नथी. ( एवं अट्टविह व धगस्स वि ) ४ अभा आ પ્રકારના કર્માંના બુધ કરનાર જીવને પણ બાવીશ પરીષહૈ। સહન કરવા પડે छे. परन्तु सेवा त्र मे साक्षे २० परीपडेोतुं वेन उरे छे. ( छविह बधगस्स णं संगे ! सराग छउमत्यस् कर परीसहा पण्णत्ता १ ) डे लहन्त 1
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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