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________________ प्रमेयचद्रिका डी० श०८ ० ८ सू० ५ कर्मप्रकृति - परीषहवर्णनम् सहं वेएइ, णो तं समयं उसिणपरीसहं वेएइ, जं समयं उणिपरीसहं वेइ नो तं समयं सीयपरीसहं वेएइ, जं समयं चरियापरीसहं वेएइ, णो तं समयं सेज्जापरीसहं वेएइ, जं समयं सेज्जापरीसहं वेएइ णोतं समयं वरिया परीसहं वेएड | एकविधगस्स णं भंते ! बीयरागच्छउमत्थस्स कइ परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा ! एवं चैव जहेव छव्विहं बंधणस्स णं एगविबंधगरसणं भंते । सजोगिभवत्थ केवलिस्स कइ परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा । एक्कारस परीसहा पण्णत्ता, नव पुण वेएइ, सेसं जहा छव्विहबंधगस्स । अबंधगस्स णं भंते । अजोगिभवत्थवलिस कइ परीसहा पण्णत्ता ? गोयमा । एक्कारसपरसहा पण्णत्ता, नव पुण वेएइ, जं समयं सीयपरीसहं वेएइ नो तं समयं उसिणपरीसहं वेएइ जं समयं उसिणपरीस हवे एड, नो तं समयं सविपरीसहं वेएइ, जं समयं चरियापरी सह वेण्इ, नो तं समयं सेज्जापरसिहं वेएइ, जं समयं सेजापरीसहं वेएइ नो तं समयं चरियापरीसहं वेएइ ॥ सू० ५॥ " छाया -कति खलु भदन्त । कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः १ गौतम ! अष्ट कर्मप्रकृतयः मत्रताः, तद्यथा - ज्ञानावरणीयं यावत् - अन्तरायिकम् । कति खलु भदन्त ! परी - कर्मप्रकृति - परीषह वक्तव्यता ५ कणं भंते! कम्पयडीओ पण्णत्ताओ' इत्यादि । सूत्रार्थ -- ( कइणं भंते! कम्मपयडिओ पण्णत्ताओ) हे भदन्त ! प्रकृतियां कितनी कही गई हैं ? ( गोयमा) हे गौतम । (अट्ठ कम्मप કમ પ્રકૃતિ-પરીષહ વકતવ્યતા कइ नं भजे | कम्मपयढीओ पण्णताओ " इत्याहि सूत्रार्थ -- ( कइ ण भते । कम्मपयढीओ पण्णत्ताओ ? ) हे महन्त ! उभप्रभृतिभो डेंटली उही छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( अट्ठ कम्मपयडीओ 66
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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