SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 808
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्र टीका-अथ गतिप्रपातस्यैव भेदान् प्ररूपयति-'कइविहेणं भंते ! गइप्पवाए पण्णत्ते ! गौतमः पृच्छति हे भदन्त ! कतिविधः खलु गतिप्रपातः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा ! पंचविहे गइप्पवाए पण्णत्ते' हे गौतम ! पञ्चविधः गतिप्रपातः प्रज्ञप्तः 'तंजहा-पयोगगई, ततगई, बंधणछेयणगई, उववायगई, विहायगई, तद्यथा-पयोगगतिः, ततगतिः, बन्धनच्छेदनगतिः, उपपातगतिः विहायोगतिः, अत्र गतिमपातभेदप्रक्रमे यद्गतिभेदं भणितम्, तद्गतिधर्मत्वात्मपातस्य, गतिभेदभणने गतिप्रपातभेदा एव भणिता भवन्तीति नो विषयान्तरम् भदन्त ! जैसा आपने यह प्रतिपादित किया है, वह सर्वथा ऐसा ही है- हे भदन्त ! वह सर्वथा ऐसा ही है- ऐसा कहकर वे गौतम यावत् स्थान पर विराजमान हो गये। टीकार्थ- सूत्रकारने इस सूत्र द्वारा गतिप्रपातके भेदोंकी प्ररूपणा कीहै- इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'कइविहेणं भंते ! गइप्पवाए पण्णत्ते' हे भदन्त ! गतिप्रपात कितने प्रकारका कहा गया है ? उत्तर में प्रभु ने कहा- 'गोयमा' हे गौतम! 'पंचविहे गहप्पवाए पण्णत्ते' गतिप्रपात पांच प्रकार का कहा गया है ' तंजहा' जो इस प्रकार से है-'पओगगई, ततगई, घंधणछेयणगई, उववायगई, विहाय. गई' प्रयोगगति, ततगति, बंधनच्छेदनगति, उपपातगति, विहायोगति । यहां गतिप्रपात के भेद प्रकरण में जो गति के भेदों का कथन किया गया है उसका कारण यह है कि प्रपात गति का धर्म है. પૂરેપૂરું કહેવું જોઈએ ગૌતમસ્વામી કહે છે હે ભદન્ત ! આપની વાત ખરી છે. હું ભદન્ત ! આ વિષયનું આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ જ છે આ પ્રમાણે કહીને વણા નમસ્કાર કરીને તેઓ તેમના સ્થાને બેસી ગયા. ટીકાથ-સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં ગતિપ્રપાતેના ભેદની પ્રરૂપણ કરી છે ગતિપ્રપાતને अनुलक्षीने गौतभस्वामी मापीर प्रभुने मेवे। न छे छे 3-'काविहेणं भंते ! गडप्पवाए पण्णत्ते १ महन्त ! गतिपातना सा प्र.२ ४ा छ ? महावीर प्रभुने। उत्तर - 'गोयमा' हे गौतम पंचविहे गइप्पवाए पण्णत्ते तंजहा' गतियातना नाय प्रमाणे पांय प्र४२ ४ा छ- 'पभोगगई, ततगई, बंधण छेयणगई, उववायगई, विहायगई' (१) प्रयोगगति, (२) ततगति, (3) मधन છેદનગતિ, (૪) ઉપપાત ગતિ અને (૫) વિહાગતિ અહીં ગતિપ્રપાતના પ્રકરણમાં ગાતના ભેદોનું જે પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે તેનું કારણ એ છે કે પ્રપાત ગતિને ધર્મ છે, તેથી ગતિના ભેદે કહેવામાં આવે ત્યારે ગતિપ્રપાતના ભેદ કહેવામાં આવ્યા
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy