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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ सू. ४ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् ६३ एवं पिशाचाः यावत् गन्धवाः। चन्द्रा यावत् ताराविमानानि । सौधर्मः कल्पः यावत् अच्युतः, अधस्तनाधस्तन३वेयक० यावत् उपरितनोपरितनगौवेयक० । विजयानुत्तरौपपातिक० यावत सर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिक० एकैकेन द्विपदो भेदो भणितव्यः, यावत् ये पर्याप्तकाः सर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिक० यावत् परिणताः, ते वैक्रियतैजसकामणशरीरपयोगपरिणताः, तृतीयो दण्डकः ३॥ मू०४ ॥ पर्याप्तक, असुरकुमार भवनवासी देवोंके संबंधमें भी जानना चाहिये। (एव दुपएणं भेएणं जाव थणियकुमारा एवं पिसाया जाव गंधवा) इस तरह इन दो भेदों द्वारा यावत् स्तनितकुमारोंकोभी, जानना चाहिये । तथा इसी तरहसे पिशाचोंको यावत् गंधर्वोकोभी जानना चाहिये । इसी तरहसे (चंदा जाव ताराविमाना) चंद्राको यावत् ताराविमानोंको (सोहम्मो कप्पो, जाव अच्चुओ, हेटिमहेट्ठिम गेवेज्ज जाव उवरिम उवरिम गेवेज्ज०) सौधर्मकल्पसे लेकर अच्युत कल्पतकके १२ कल्पों को, अधोवर्ती तीनवेयकोको, यावत् ऊपरके तीनवेयकोंको, (विजय अणुत्तरोवाइए जाव सम्वट्ठसिद्ध अणु०, एक्केक्केणं दुयओ भेदो भाणियन्वो जाव जे पजत्ता सव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइया जाव परिणया ते वेउविया तेया कम्मा सरीरप्पओग परिणया) विजय अनुत्तरोपपातिक यावत् सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक इन पांच अनुत्तरविमानोंकोभी दो दो भेदवाला कहना चाहिये । इस तरह जो पुद्गल यावत् अपर्याप्तक. सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक देवप्रयोगपरिणत हैं वे भवनपति हो (वर्ष ५५] समन (एव दपएणं भेएणं जाव थणियकुमारा-एवं ,पिसाया जाव गंधया) से प्रभारी मा मे लेहो द्वारा स्तनितभार पर्यन्तना ભવનપતિદેવેનુ તથા પિશાચથી લઈને ગ ધર્વ પર્યન્તના વનવ્યતનુ પણ કથન સમજવું. (च दा जाव ताराविमाना) यन्द्रया सधन तविमान ५-तना ज्योतिषिाने, (सोहम्मो कप्पो, जाव अच्चुओ, हेहिमहेहिम गेवेज्ज - जाव उपरिमउवरिम गेवेज्ज.) सीधम ५थी दाने अश्युत पतना मारे ४८याने, नायना न वयाने, मध्यम वयाने मने अ५२ना त्रय वयाने, (विजय अणुत्तरोववाइ ए जाव सचट्ठ सिद्ध अणु., एक्केकेणं दुयओ भेदो भाणियन्यो जाव जे पज्जत्ता सव्वदृसिद्ध अणुत्तरोबवाइया जाव परिणया - ते वेठबिया तेया कम्मा सरीरप्पओगपरिणया ) वि४य मनुत्तरीयपातिथी सन सायसिद्ध मनुत्तशेषપાતિક પર્યન્તના પાચ વિમાનને પણ બબ્બે ભેદવાળા કહેવા જોઈએ. આ રીતે જે પગલે અપર્યાપ્તક સર્વાર્થસિદ્ધ અનુત્તરૌપપાતિક દેવ પર્યન્તના પ્રયોગપરિણત છે, તેઓ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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