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________________ ७४० भगवती 5 औदारिकशरीरात् परकीयौदा रिकशरीरमाश्रित्य कतिक्रियाः भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! सिय तिकिरिया जाव सिय अकिरिया' हे गौतम ! जीवाः यदा परकीयौदारिकशरीरमाश्रित्य कार्य व्यापारयन्ति तदा स्यात् कदाचित् त्रिक्रियाः भवन्ति, यावत् स्यात् कदाचित् चतुष्क्रियाः स्यात् कदाचित् पश्चक्रिया भवन्ति, स्यात् कदाचित् अक्रियाः भवन्ति, गौतमः पृच्छति - 'नेरइयाणं भंते ओरालियस राओ कइ किरिया ?' हे भदन्त ! नैरयिकाः खलु - औदारिकशरीराद औदारिकशरीरमाश्रित्य कतिक्रिया भवन्ति ? भगवानाह - ' एवं एसो वि जहा पढमो दंडओ तहा भाणियव्वो जाव वैमाणिया, नवरं लेकर गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं. 'जीवाणं भंते ! ओरालिय सरीराओ कह किरिया' हे भदन्त ! जीव परकीय औदारिक शरीरको आश्रित करके कितने प्रकार की क्रियाओंवाले होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय तिकिरिया, जाब सिय अकिरिया' जीव जब परकीय औदारिक शरीरको आश्रित करके कायका व्यापार करते हैं उस समय वे कदाचित् तीन क्रियाओंवाले भी होते हैं, कदाचित् चार क्रियाओंवाले भी होते हैं और कदाचित् पांच क्रियाओंवाले भी होते हैं । तथा कदाचित् वे क्रिया रहित भी होते हैं । क्रिया रहित पना इनमें मनुष्य और सिद्ध की अपेक्षा कहा है । अव गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'णेरडगाणं भंते ! ओरालिपसरीराओ ककिरिया' हे भदन्त ! नारक जीव परकीय औदारिक शरीरों को आश्रित करके कितने प्रकारकी क्रियाओंवाले होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- ' एवं एसो वि- जहा पढमो दंडओ तहा भाणियव्वो जाव वैमाणिया અનેક જીવ પરકીય ઔદારિક શરીરને આશ્રિત કરીને કેટલી ક્રિયાઓવાળા હાય છે ? उत्तर- ' गोयमा' हे गौतम! 'सिय तिकिरिया, जाव सिय अकिरिया ' જીવા જ્યારે પરકીય ઔદારિક શરીરને આશ્રિત કરીને કાયના વ્યાપારમાં પ્રવૃત્ત થાય છે, ત્યારે કયારેક ત્રણ ક્રિયાઓવાળા પણુ હાય છે, કયારેક ચાર ક્રિયાઓવાળા પશુ હાય છે, ક્યારેક પાંચ ક્રિયાઓવાળા પણુ હાય છે અને કયારેક ક્રિયા રહિત પણ હોય છે. મનુષ્ય અને સિદ્ધની અપેક્ષાએ તેમનામાં ક્મિા રહિતતા કહી છે, એમ સમજવું. गौतम स्वामी नारानी अपेक्षा अभ पूछे है- 'णेरइयाणं भंते! ओरालियासरीराओ कडकिरिया ? ' हे लत! नावे परडीय मोहारिक ૠરીરને આશ્રિત કરીને કેટલી ક્રિયાઓવાળા હોય છે ! い 1-1 · भहावीर प्रभु। उत्तर- "एवं एसो वि जहा पढमो दंडभो तहा भाणियो ·
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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