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________________ ७०६ भगवतीसूत्रे ' अमुखाः स्युः, स खलु भदन्त ! किम् आराधकः ? विराकोवा भवेत् ? गौतम ! स आराधको भवेत्, नो विराधकः स्यात, 'एत्थवि एतेचे अट्ठ आलावगा, भाणियन्वा, जांव नो विराइए ' एवमेतान्यष्टौ पिण्डपातार्थ गृहपतिकुले प्रविष्टस्य एवं विचारभूम्यादावट, एवं विहारभूमिग्रामादौ गमनेऽष्टौ एवमेतानि चतुर्विंशतिः सूत्राणि भवन्ति । निग्गंथेणय गामाशुगामं दुइज्जमाणेणं अन्नयरे अकिञ्चद्वाणे पडिसेत्रिए, तस्सणं एवं भवड़ - इहेव ताव अहं' निर्ग्रन्थेन श्रमणेन च ग्रामानुग्रामं व्यतिव्रजता परिभ्रमता इत्यर्थः चलते २ वह स्थविरों के पास नहीं पहुंच पाता है कि इतने में स्थविर मूक हो जाते हैं । तो ऐसी दशा में हे भदन्त ! वह निर्ग्रन्थ श्रमण आराधक होता है या विराधक होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम ! वह निर्ग्रन्थ श्रमण ऐसी दशा में आराधक ही होता है विराधक नहीं । 'एत्थ वि एए चैव अट्ठ आलावा भाणियव्वा जाव नो विराहए' जिस प्रकार से पिण्ड ग्रहण की इच्छा से गृहपति के घर पर गये हुए निर्ग्रन्थ श्रमण के आठ आलापक कहे गये हैं - उसी तरह से विचारभूमि आदि में गये हुए श्रमण निर्ग्रन्थ के आठ आलापक कहे गये हैं, इसी तरह से विहारभूमि - ग्रामादि में जाने पर आठ आलापक कहे गये हैं । इस तरह ये २४ आलापक होते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'निग्येण च गामाणुगामं दृहज्जमाणेणं अन्नयरे अकिञ्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइ, इहेव ताव अहं' एक ग्राम से दूसरे ग्राम તે પહેલા તે તે સ્થવિર મૂક થઇ જાય છે. તો હું ભન્ત ! આ પરિસ્થિતિમાં આલેચના આદિ નહી કરી શકનાર તે નિગ્રંથને આરાધક ગણી શકાય કે વિરાધક ? ५ 6 ઉત્તર :– હે ગૌતમ ! એવી પરિ સ્થતિમાં તેને આરાધક જ માની #કાય, વિરાધક નહી एत्थ वि एए व अट्ठ आलावा भाणियव्वा जाव नो विराहए ' અહાર પ્રાપ્તિની ઈચ્છાથી કેાઈ ગૃહસ્તન ઘેર ગયેલા શ્રમનિગ્રંથ વિષે જે પ્રકારના આઠ આલાપક કહેવામાં આવ્યા છે, એવા જ આઠે આલાપક નિહારભૂમિ આદિમાં ગયેલા શ્રમણુનિ ચ વિષે પણ કહેવા જોઇએ. એજ પ્રમાણે વિહારભૂમિ [ગ્રામાદિ] માં ગયેલા નિગ્ર યના પણુ આઠે આલાપક હોવા જોઇએ. આ રીતે કુલ ૨૪ આલાપક થાય છે. हवे गौतम स्वामी महावार असुने येव। उश्न पूछे छे ! ' निग्गंभेण य गामाणुगामं दूइजमाणेणं अनयरे अकिचट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवइ, sta दाव अहं ' छत्याहि मे४ ग्रामथा जीने ग्राम विहार ४२तां श्रमनिर्भथ द्वारा ܐ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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