SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 654
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ , ६५६ भगवतीमत्रे . छाया-कृतिविधाः खलु भदन्त ! देवलोकाः प्रज्ञप्ताः ! गौतम ! चतुविधा देवलोकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-भवनवासि-चानव्यन्तर-ज्योतिषिकवैमानिका तदेवं भदन्त । तदेवं भदन्त इति ॥ ४॥ ____टीका-इतः पूर्व 'देवतया उपपत्तारो भवन्ति' इत्युक्ततया तदधिकारात् देवानेव भेदतः प्रतिपादयति-'कइविहाणं भंते ! देवलोगा पण्णत्ता १ गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कतिविधा. कियत्पकाराः खलु देवलोकाः प्रज्ञप्ताः ? देवलोकवक्तव्यता'कइविहाणं भंते ! देवलोगा पण्णता ?' इत्यादि । सूत्रार्थ - ( कइविहा णं भंते ! देवलोगा पण्णत्ता) हे भदन्त ! देवलोक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? (गोयमा! चउन्विहा देवलोगा पण्णत्ता) हे गौतम ! देवलोक चार प्रकारके कहे गये हैं (तंजहा) जो इस प्रकार से हैं-(भवणवासिवाणमंतर-जोइस-वेमाणिया सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) भवनवासी वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, और वैमानिक.. हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह बिलकुल मत्य ही है- हे . भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह बिलकुल सत्य ही है। टीकार्थ :- इससे पहेले जो ऐसा गया है कि ये किसी एक देवलोक में देवरूपसे उत्पन्न हो जाते हैं- सो इसी संबंधको लेकर यहां सूत्रकारने देवों के भेदोंका कथन किया है-इसमें गौतमस्वामीने प्रभुसे ऐसा पूछा है कि 'कइविहाणं भले! देवलोगो पणत्ता' हेवनानी तिव्यता'कइविहाणं भंते ! देवलोगा पण्णत्ता ? ' त्यासत्राथः - (काविहाणं भंते ! देवलोगा पण्णत्ता ! ) Ed! Raisit टमा २ ह्या छ? (गोयमा ! चउबिहा देवलोगा पण्णत्ता), गौतम! देवताना या२ र ४था छ (तंजहा) २ मा प्रभारी - (भवणवासी, वाणमंतर. जोइस, वेमाणिया.) (१) सपनवासी (२) वातव्यतर (3) ज्योतिष भने (४) मानि (सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति) महन्त । साथै मा વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે સત્યજ છે. હે ભદન્ત ! આપની વાત સર્વથા સત્ય છે. ટીકાથ:- આગલા સત્રને અંતે એવું કહેવામાં આવ્યું છે કે “તેઓ કોઈ એક દેવલેકમાં દેવરૂપે ઉત્પન્ન થાય છે', આ સબ ધને અનુલક્ષીને અહીં દેના ભેદોનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે. આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને पूछे छे । 'कुइविहाणं भंते ! देवळोगा पण्णचा ?' महdi Rais seal
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy