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________________ __ भगवतीसगे विषयकविचारमाह- 'रायगिहे जाव एव चयासी' राजगृहे यावत् नगरे स्वामी समवसृतः, समवसृतं भगवन्तं वन्दितु पर्षत् निर्गच्छति, धर्मदेशनाश्रवणानन्तरं प्रतिगता पर्षत, ततः शुश्रपमाणो नमम्यन् विनयेन प्रालिपुटः गौतमः एवं वक्ष्यमाणक्रमेण अवादीत्- 'आजीविया णं भंते थेरे भगवते एव वयासी' आजीविकाः गोशालकशिप्याः खलु भदन्त ! म्थविरान निर्ग्रन्थान् भगवत; एवम् वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादिषुः- राजगृहे नगरे भिक्षार्थ भ्रमतः श्रमणनिग्रन्थान् प्रति गोशालकशिष्याः यत्पृष्टवन्तस्तत गौतमः स्वयमेवानुवदन्नाह- 'समणोबासगस्स णं भंते ! सामाइयक्डम्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ भंढे अब हरेजा' हे भदन्त ! श्रमणोपासकस्य श्रावकम्य खलु सामायिककृतम्य कृतसामायिकस्य प्रतिपन्नाधशिक्षाव्रतस्य श्रमणोपाश्रये प्रस्तुत किया है- 'रायगिहे जाव एवं क्यासी' राजगृह नगरमें यावत् -स्वामी पधारे-स्वामीको आया हुआ जानकर उनको वदना करने के लिये परिषद अपने २ स्थानसे निकली-प्रभु महावीर के पास पहुच कर उससे धर्मापदेश सुना--धर्मोपदेश सुनकर वह वापिस अपने २ स्थान पर चली आई। उसके बाद धर्म सुननेकी अभिलाषा वाले गौतमम्वामीने प्रभुको नमस्कार करके उनसे दोनों हाथ जोडकर बडे विनय के साथ ऐसा पूछा- 'आजीविया णं भंते ! थेरे भगवंते एवं वयासी' हे भदन्त ! राजगृह नगर में भिक्षाप्राप्तिके निमित्त भ्रमण करने वाले श्रमण निर्ग्रन्थो से गोशालक के शिष्योंने इस प्रकार से पूछा'समणोवासगस्सणं भते ! सामाइयक डरस समणोवरसए अच्छमाणग्सकेइ भंडे अवहरेज्जा' हे भदन्त ! श्रमणोपासक-श्रावक कि जिसने सामायिक शिक्षाव्रत धारण किया है और जो उपाश्रय में बैठा हुआ 'रायगिहे जाव एवं वयासी' IPS नाम महावीर प्रभु पधार्या, तभने | નમસ્કાર કરવા માટે પરિષદ નકળી વંદણા નમસ્કાર કરીને ધર્મોપદેશ સાંભળ્યા પછી પરિષદ વિખરાઈ ગઈ ત્યાર બાદ ધર્મનું તત્ત્વ સમજવાની અભિલાષાવાળા ગૌતમ સ્વામીએ મહાવીર પ્રભુને વઘણું કરી નમસ્કાર કર્યા અને બન્ને હાથ જોડીને વિનયપૂર્વક मा प्रमाणे पूछ्यु- 'ओजीवियाणं भंते ! थेरे भगवंते एवं वयासी'मत! રાજગૃહ નગરમાં ભિક્ષાપ્રાપ્તિને માટે બ્રમણ કરતાં શ્રમણ નિર્ચને ગૌશાલકના શિષ્યોએ मा प्रभारी पूच्यु- 'समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केड भंडे अवहरेज्जा' महन्त ! 12 था१४ [श्रमापास४] સામાયિક શિક્ષાવ્રત ધારણ કરીને ઉપાશ્રયમાં બેઠેલો છે હવે કે પુરુષ તેણે સામાયિક
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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