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________________ ५८३ प्रमेrचन्द्रिका टीका श.८ उ. ५ . १ परिग्रहादिक्रिया निरूपणम् भाण्डम् अनुगवेषयति ? गौतम ! तस्य खलु एवं भवति नो मे हिरण्यम्, नो मे सुवर्णम्, नो मे कांस्यम्, नो मे दृष्यम्, नो मे विपुलधनकनकरत्नमणि मौक्तिकशङ्खशिलाप्रवाल रक्तरत्नादिसत्सारस्वापतेयम्, ममत्वभावः पुनः तस्य अपरिज्ञातो भवति, तत्तेनार्थेन गौतम । एवमुच्यते स्वकीयं भाण्डम् अनुगवेषयति, नो परकीयं भाण्डम् अनुगवेपयति । श्रमणोपासकस्य खलु अपने भाण्डकी गवेषणा करता है दूसरेके भाण्डकी गवेषणा नहीं करता है ? (गोयमा) हे गौतम । (तस्स णं एवं भवइ, णो मे हिरणे, नो मे सुवणे नो मे कंसे, णो मे दुसे, णो मे विउलधणकणगरयणमणि मोत्तिय संखसिलप्पवालग्प्तरयणमाइए, संतसारमावएज्जे, ममत्तभावे पुणसे अपरिणाए भवइ-से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ, सयं भंड अणुगवेसह, नो परायगं भंडं अणुगवेसइ) हे गौतम ! सामायिक करने वाले श्रावक के मन में ऐसा परिणाम होता है कि हिरण्य (चांदी) मेग नहीं है, सुवर्ण मेरा नहीं हैं, कांसा मेरा नही है, वस्त्र मेरा नही है, विपुल, धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, प्रचाल, लालरत्न, इत्यादि विद्यमान सारभूत द्रव्य मेरा नही है परंतु इन वस्तुओं से उसका ममत्वभाव प्रत्याख्यान नही हुआ है अर्थात् इस पदार्थों से उसने ममत्वभावका प्रत्याख्यान नही किया है । इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि वह अपने भांडोंकी गवेषणा करता है । दूसरे के भाण्डोंकी वह गवेषणा नही करता है । (समणो છે કે તે તેના પેાતાનાં ભાંડની શેાધ કરે છે પારકા ભાંડની શેાધ કરતા નથી ? (गोचमा ! ) हे गौतम! ( तम्स णं एवं भवइ, णो मे हिरण्णे, नो मे सुवणे णो मे कंसे, णो मे दूसे, णो मे विउलधणकणगरयणमणिमोत्तिय संखसिलप्पदालरत्तरयणमाइए, संतसारसावएज्जे, ममत्तभावे पुण से अपरिष्णाए भवइ से तेणटुणं गोयमा ! एवं बुच्चड, सय भंड अणुगवेसइ, नो परायगं भंड अणुगवेसइ) सामायिक ४२नार श्रावना મનમા એવા પિરણામ (ભાવ) હાય છે કે આ ચાંદી મારી નથી, સેતુ મારું નથી, કાંસુ મારુ નથી, વજ્ર માાં નથી, વિપુલ धन, हैन, रत्न, मणि, भोती, शुभ प्रवास, લાલ રત્ન વગેરે વિધમાન સારભૂત દ્રબ્ય મારાં નથી; પરન્તુ એ વસ્તુઓ પ્રત્યેના સમત્વ ભાવના પ્રત્યાખ્યાન તેણે કર્યાં હાતા નથી. હે ગૌતમ । તે કારણે મેં એવું કહ્યુ છે કે શ્રાવક પેાતાના ભાંડાની તપાસ કરે છે— અન્યનાં ભાડાની તપાસ કરતા નથી. . -
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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