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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ . ३ सूक्ष्मपृथ्वीका यस्वरूपनिरूपणम् ४३ गौतम ! द्विविधाः प्रजाः, तद्यथा पर्याप्तक० अपर्याप्त०, एवं गर्भव्युत्क्रान्तिका अपि, संमूच्छिमचतुष्पदस्थलचराः, एवं चैव गर्भव्युत्क्रान्तिकाथ, एवं यावत् संमूच्छिमखेचराः गर्भव्युत्क्रान्तिकाच. एकैके पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्तकाश्च भणितव्याः । संमूच्छिममनुष्यप चेन्द्रिय० पृच्छा ? गौतम ! एकविधाः प्रज्ञप्ताः, जानना चाहिये । समुच्छिम जलयर तिरिक्खपुच्छा) हे भदन्त ! समूच्छिम जलचर तिर्य चयोनिक प्रयोगपरिणत पुद्गल कितने प्रकारके हैं? (गोमा) हे गौतम ! ( दुबिहा पण्णत्ता) संमूच्छिम जलचर तिर्यचयोनिक प्रयोगपरिणत पुद्गल दो प्रकारके हैं (तंजा) जो इस प्रकार से हैं (पजत्तग० अपज्जत्तग• एवं गभवक तियाचि) पर्याप्तक संमूच्छिमजल'चर तिर्यचयोनिक प्रयोग परिणत पुद्गल एवं अपर्याप्तक संग्रच्छिमजलचर तिर्यचयोनिकप्रयोगपरिणत पुद्गल इसी प्रकार से गर्भजजलचर भी जानना चाहिये । ( संमुच्छिमचउप्पय थलपुरा एवंचेव गन्भवक्कं - तियाय) संमूच्छिम चतुष्पद स्थलचर तथा गर्भज चतुष्पद स्थलचर जीव भी जानना चाहिये | ( एवं जाव संमुच्छिमहयर गन्भवक्कतिया थ एक्के के पज्जत्तगाय अपज्जत्तगाय भाणियव्चा) इसी तरहसे यावत् संमूच्छिम खेचर तथा गर्भज खेचर जोब भी जानना चाहिये । ये सब जलचरादि तिर्थेच पर्याप्त और अपर्याप्तक के भेदसे दोदो प्रकार के होते हैं | यहां पर सूक्ष्म, बादर ये दोभेद नहीं होते हैं क्योंकि ये नैरपि। विषे समन्वु ( संमुच्छिम जलयर तिरिक्ख पुच्छा) के लहन्त ! सभूर्च्छिभ ४सयर तिर्यययोनि प्रयोगपरित युगल डेटा प्रहारना खा छे ! ( गोयमा ! ) गौतम | दुबिहा पण्णत्ता - त जहा ) सभूमि ४सयर तिथं ययोनिः प्रयोगપરિણુત પુદ્ગલના નીચે પ્રમાણે બે પ્રકાર કહ્યા છે (पज्जत्तग० अपज्जत्तग० - एवं गव्भवक्कतिया वि) (१) पर्यात संभूर्च्छिभ જલચરતિય ચયેાનિક પ્રયેગપરિણત પુદ્ગલ અને (૨) અપર્યાપ્તક સ‘મૂર્ચ્છિ મજલચરતિય ચચેાનિક પ્રયાગપરિણુન પુદ્ગલ એ જ પ્રમાણે ગાઁજ જલચરના વિષયમા પશુ સમજવું, ( संमुच्छिम चउप्पय थलयरा एव चेव गव्भवक्कंतिया य) संभूर्च्छिभ ચતુષ્પદ સ્થલર તથા ગભૅજ ચતુષ્પદ સ્થલચરના પણ એવા જ બે પ્રકાર સમજવા ( एवं जात्र संमुच्छिम खहयर गव्भवक्कंतिया य एक्के क्के पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य भाणियन्त्रा ) मे ४ प्रभास भूमि मेयर तथा गर्भ मेयर પન્તના જીવાના વિષયમા પણુ સમજવું. તે બધાં જલચરાદિ તિ ચેામા પ્રત્યેક તિય ચના પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક એવા બે બે પ્રકારેાડાય છે અહી સૂક્ષ્મ અને
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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