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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श ८ उ. ३ मू. ३ रत्नप्रभादिपृथिवीनिरूपणम् ५६९ स्पर्श पुनर्लप्स्यन्ते ते वैमानिकाः 'अचरमाः' इति व्यवहियन्ते, अन्ते गौतमो भगवद्वाक्यं स्वीकुर्वन्नाह- 'सेवं भंते! सव भंते' ति हे भदन्त! तदेवं-भगव दुक्त सर्व सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेवं भगवदुक्त सर्व सत्यमे वेति भावः ॥ ३॥ इति श्री-विश्वविख्यान-जगहल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलित-ललित कलापालापक-प्रविशुद्र-गद्यपधनैकग्रंथनिर्मापक-बादिमानमर्दक-श्रीशाहन्छत्रपति-कोल्हापुरराज-प्रदत्त "जैनशास्त्राचार्य" पदभूषित कोल्हापुरराजगुरु-बालब्रह्मचारि- जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्री-घासीलालबतिविरचितायां "श्रीभगवतीमत्रस्य" "प्रमेयचन्द्रिका"ऽऽख्यायां व्याख्यायां अष्टमशतकस्य तृतीयोदेशकः समाप्तः ८-३ अब अन्तमें भगवानके वाक्यको स्वीकार करते हुए कहते हैं 'सेवं भंते ! सेवं भंते । त्ति' हे सदन्त ! जैसा आपने कहा है वह सब सर्वथा सत्य है । हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह लव सर्वथा सत्य है। इस प्रकार कह कर वे गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये सू० ३॥ जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराजकृत 'भगवती' सूत्रकी प्रमेयचद्रिका व्याख्याके आठवें शतकका तृतीय उद्देशक समाप्त ८-३ पायानो खाजार ४२ता गौतमस्वामी ४ छे 'सेवं भते सेव भंते त्ति' महन्त ! આપે જે કહ્યું છે તે સર્વથ સત્ય છે, આપે જે કહ્યું છે તે સર્વથા સત્ય છે એવું કહી ગૌતમ સ્વામી પોતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થઈ ગયા છે સૂ, ૩ / જનાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત ભગવતી’ સૂત્રની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના આઠમા શતકને ત્રીજો ઉદ્દેશક રામાપ્ત. ૮-૩
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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