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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८उ. ३ मू. २ जीवाच्छेद्यतानिरूपणम् ५५७ एतेषां खलु कूर्मादिमहिषाबलिकापर्यन्तानाम् द्विधा वा, त्रिधा वा, संख्यातधापि वा च्छिन्नानां खण्डितानां यत् अन्तरालानि, तान्यपि अन्तरालानि खलु तैः जीवप्रदेशै स्पृष्टानि किम् ? भगवानाह- 'हंता, फुडा' हे गौतम ! हन्त, सत्यम्, कूर्मादीनां शतधाच्छिन्नानाम् तदन्तरं जीवप्रदेशः स्पृष्ट वर्तते इत्यर्थः, गौतमः पृच्छति-'पुरिसे णं भंते ! ते अंतरे हत्थेण बा, पायेण वा, अंगुलियाए वा, सलागाए वा,' हे सदन्त ! पुरुपः खलु अन्यतमः कश्चित् तदन्तरं हस्तेन वा, पादेन वा, अजुलिकया वा, गलाकया वा-लोहादिरचितया, 'कटेण वा, किलिंचेण वा, आमुसमाणे वा, संमुसमाणे वा, आलिहमाणे चा, विलिहमाणे बा,' काष्ठेन वा खदिरादिदारुखण्डेन वा, विलिश्चेन वा एलेहि कुडा' छिन्न हुए उन जीवोंका जो अंतराल क्षेत्र है वह क्या उन जीवों के जीव मदेशों से स्पृष्ट हुआ माना जाता है ? पूछने का तात्पर्य यह है कि जीव के शरीर के जब कोई प्राणी टुकडे कर डालता है- तब क्या उन बुकडों के बीच का आकाश क्षेत्र उस जीव के प्रदेशों से स्पृष्ट हुआ माना जावेगा क्या ? इसके उत्तर में प्रयु कहते हैं 'हंता कुडा' हो, गौतम ! छिन्न हए उन २ जीवों का अन्तरालवर्ती क्षेत्र उन २ जीवों के प्रदेशों से स्पृष्ट हआ अवश्य "ना जाता है। अब गौतम स्वामी प्रभु ने ऐसा पूछते हैं कि यदि ये आदि रूप थे छिन्न हुए जीवों के प्रदेशों से तदन्तरालवर्ती क्षेत्र रदि स्पृष्ट हुआ माना जाता है-तो ऐसी स्थिति में 'रिसे णं भने। ते अंतरे हत्थेण वा, पायेण वा अंगुलियाए वा, सलागाएण वा, कटेण वा, मिलिंचेण वा, आमुसमाणे वा, संमुसमाणेवा, आलिहमाणे वा विलिहमाणे वा' यदि कोई पुरुष उस जीव प्रदेश ९५॥ रे तोते यतिभा - छिन्नाणं जे अंतरा ते विणं तेहिं जीवपरसेहि फुडा' કપાએલા તે છ અંતરાળ ક્ષેત્ર છે તે જીવોના જીવપ્રદેશને સ્પર્શ કરે છે તેમ માની શકાય છે? પૂછવાને હેતુ એ છે કે જીવના શરીરના જ્યારે કે પ્રાણી ટુકડા કરી નાખે ત્યારે શું તેમના ટુકડાની વચમાં–વચ્ચેના આકાશક્ષેત્રને તે જીવપ્રદેશથી સ્પર્શ થઈને–થયેલું भनाश ? 8 :- "हंता मुडा' गौतम! पामेला ७वाना साशवती' ક્ષેત્ર તે તે જીવોના પ્રદેશથી સ્પર્શ થયેલું અવશ્ય માની શકાય છે. હવે ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને પૂછે છે કે જે બે આદિ રૂપમાં છિન્ન થયેલા જીવપ્રદેશથી તેના અંતરાલમાં રહેલું क्षेत्र २५ गतु भानी शय तो ते स्थितिमा पुरिसेणं भंते ते अतरे हत्थेणवा, पायेण वा, अगुलियाए वा, सलागाए वा, कटेण वा, किलिंचेण वा, आमुसमाणे वा,
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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