SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 551
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. ३ सू. १ वृक्षविशेषनिरूपणम् ५५३ " 'तं जहा आलुए, मूलए, सिंगवेरे' तद्यथा - आलूकम् (बटाटा) मूलकम् (मली) श्रृङ्गवेरम् आर्द्रकम् इत्यादि, ' एवं जहा सत्तमसए जाव मीउन्हे सिउ ढी' मुसुंडी एवं यथा सप्तमशतकम्य तृतीयोदेशके यावत् डिरिलिः, सिरिलि; सिस्सिरिलिः किट्टिकाः क्षीरिका; क्षीरविरारिका, वज्रकन्दः, सरणकन्दः, खेलूट, कन्दविक्षेप आर्द्र भद्रमुस्तिका, पिण्डद्दरिद्रा; रोहिणी; हूथीहू, थिस्का; मुद्गपर्णी, अश्वकर्णी, सिहकर्णी, सीढी, मुसृण्ढी; 'जे यावन्ने नहप्पगारा' ये चाप्यन्ये तथामकाराः तत्सदृशा वर्तन्ते सर्वेते अनन्तजीववन्त इत्याशय, तदुपस हरन्नाह - 'सेत्त अणतजीविया' तदेते उपरि वर्णिता आलूक प्रभृति मुसुण्डी पर्यन्ताः अनन्तजीविकाः अनन्तजीवनन्तः इति भावः || सू० १ ॥ जीवाच्छेद्यतावक्तव्यता | मूलम् -'अह भंते ! कुम्से, कुस्माबलिया, गोहे, गोहावलिया, गोणे, गोणावलिया, मणुस्से, मणुस्सावलिया, सहिसे वृक्ष अनेक प्रकार के होते हैं । 'तजहा' जैसे- 'आलुए, मूलए, सिंगवेरे' आलु- बटाटा, मूलक-मूली, शृङ्गवेर-अदरख, इत्यादि 'एवं जहा सत्तम 'सए जाब सीउन्हे सिउढी, मुलुंडी' जिस प्रकार सप्तमालक तृतीय उद्देशक में ऐसा कहा गया है कि 'हिरिल, सिरिल, सिस्सिरिलि, किट्टिका, क्षीरिका, क्षीरविरारिका, वज्रकन्द, सूरणकन्द, खेलूट, आर्द्र भद्रमुम्तिका, पिण्डहरिद्रा, रोहिणी हूथींह, थिरूका, मुद्गपर्णी, अश्वकर्णी सिंहकर्णी, सीउंदो, मुसुढी' ये सब अनन्त जीववाले वृक्ष हैं । तथा 'जे यावन्ने तहप्पगारा' इसी प्रकार के जो और भी वृक्ष हैं - वे सब भी अनन्त जीवाले वृक्ष हैं 'से त्त, अणतजीविया' इस तरह यह अनन्त जीववाले वृक्षका वर्णन है सू० ॥ १॥ " मूलए, सिंगवेरे ' मालु-टाटा, भूल-भूजा, श्रृंगवेर - खाहु छत्याहि एवं जहा सत्तमसए जान सीउन्हे, सिउढी, मुसुढी' ने अरे सातभा શતકના ત્રીજા उद्देश्श४भा येवु ऽह्यु छे } ‘हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किट्टिका, क्षीरीका, क्षीरविरारिका, वज्रकंद, सूरणकन्द, खेलूट, आर्द्र मद्रमुस्तिका, पिण्डहरिद्रा, रोहीणीहूथीहू, थिरुका, मुग्दपर्णी, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सीउंढी, मुसुंढी मा सघणा अनन्तलववाणा वृक्ष छे तथा 'जे यावन्ने तहप्पगारा આ પ્રકારના ખીજા પણ વૃક્ષ છે તે સઘળા પણુ અનન્તજીવવાળા વૃક્ષ છે 'सेत अनंतजीविया' या उभाये या अन तब्ववाणा वृक्षोनु वायुन छे. ॥ १ ॥ , ܕ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy