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________________ भगवतीसूत्रे ४६४ 3 खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिन ? चत्वारि ज्ञानानि भजनयां, एवं श्रुतज्ञान साकारोपयुक्ता अपि अवधिज्ञानसाकारोपयुक्ताः यथा अवधिज्ञानलब्धिकाः, मनःपर्यवज्ञानसा कारोपयुक्ताः यथा मनः पर्यवज्ञानलब्धिकाः, केवलज्ञानसाकारोपयुक्ता यथा केवलज्ञानलब्धिकाः, मत्यज्ञान साकारोपयुक्तानां त्रीणि उपयोगवाले जीवोंके पांच ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजनासे होते हैं । (आभिणिबोधिय नाण सागारोवउत्ताणं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?) हे भदन्त ! आभिनिवोधिक ( मतिज्ञानवाले) साकार उपयोगवाले जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? ( चत्तारि णाणाई भयणाए) अभिनिवोधिक साकार उपयोगवाले जीव ज्ञानी ही होते हैं, अज्ञानी नहीं होते हैं । उनमें चार ज्ञान भजनासे होते हैं (एवं सुयनाण सागारोवउत्ता वि) इसी तरह से श्रुतज्ञान साकार उपयोगवाले जीवोंको भी जानना चाहिये ( ओहिणाणसागारोवउत्ता जहा ओहिनाणलडिया, मणपज्जवनाण सागारोवउत्ता जहा सणपज्जवनाणलजिया, केवलनाणसागारोवउत्ता जहा केवलनाणलडिया ) अवधिज्ञान साकारोपयुक्त जीवोंको अवधिज्ञान लब्धिवाले जीवोंकी तरह जानना चाहिये | मनःपर्यवज्ञान साकार उपयोगवाले जीवोंको मनःपर्यव ज्ञान लब्धिवाले जीवोंकी तरह जानना चाहिये । केवलज्ञान साकार उपयोगवाले जीवोंको केवलज्ञान लब्धिवाले जीवोंकी तरह जानना चाहिये । (मइअन्नाणसोगारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, एवं सुय અજ્ઞાન ભજનાથી હાય છે. ' आभिणिवोहियनाणसागारोवउत्ताणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी ' हे भगवान् । मालिनिम।धि४ साार उपयोगवाजा व ज्ञानी हाय छे ट्ठे रमज्ञानी होय छे ? ' चत्तारिनाणाई भयणाए ' साभिनिषधि साकार ઉપયાગવાળા જીવ નાની જ હાય છે. અજ્ઞાની હાતા નથી અને તેએા ભજનાથી ચાર ज्ञानवाणा होय छे. ' एवं सुयनाणसागारोवउत्तावि ' मेवा रीते श्रुतज्ञान साधर ઉપયોગવાળા જીવાને પણ સમજવા ओहिनाणसागरोवउत्ता जहा ओहिनाण लडिया मणपज्जवनाणसागरोवउत्ता जहा मणपज्जवनाणल दिया केवलनाण सागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धिया ' અવધિજ્ઞાન સાકાર ઉપયેાગવાળા જીવાને અવધિજ્ઞાનલબ્ધિવાળા જીવાની મા સમજવા, મન વજ્ઞાન સાકાર ઉપયેાગવાળા જીવાને મનઃપવજ્ઞાનલબ્ધિવાળા જીવાની મા જ સમજવા કેવળજ્ઞાન સાકાર ઉપયોગवाजा लवोने ठेवणज्ञान सन्धिवाणा भवानी भाई समवा. 'मइअन्नाणसागारोव ५ 0
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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