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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श. ८ उ. २ सू. ९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४४९ ये ज्ञानिनस्तेपां पञ्च ज्ञानानि भजनगा, ये तु अज्ञानिनस्तेपामज्ञानत्रयं भजनयैव, यथाख्यातचारित्रलब्धिमतामुक्तविशेष सूचयितुमाह-नवरमित्यादि । एनश्च सामायिकादि चारित्रचतुष्टयलब्धिमतां छझस्थतया दत्वारि एव ज्ञानानि भजनया, यथाख्यातचारित्रलब्धिमतान्तु छाम्छमिन्नतया पञ्चापि ज्ञानानि भवन्तीति भारः । गौतमः पृच्छति 'चरित्ताररित्तलद्धिया णं संते। जीवा किं नाणी, अन्नाणी ?' हे भदन्त ! चारित्राचारित्रलब्धिका देगविरतिमन्तः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति ? अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! नाणी, नो अन्नाणी' हे गौतम ! चारित्राचारित्रलव्धिका जीवाः ज्ञानिनो भवन्ति, नो अज्ञानिनः, तत्र 'अत्थेगडया दुग्णाणी, अन्थेगइया तिन्नाणी' सन्ति एके चारित्राचारित्रलब्धिमन्तो ज्ञानिनो विज्ञानिनो भवन्ति, सन्ति एकले तादृशलब्धिमन्तो ज्ञानिनस्त्रिज्ञानिलः 'जे दुन्नाणी ने आमिणिवोहियनाणी य, मुयज्ञानियोंमें भजनासे पांच ज्ञान होते हैं। यथाख्यातचारित्र वीतराग चारित्र कहा है। और इसमें जो पांचों जानोंको भजना ले कहा गया है वह ग्यारहवें और बारहः गुणस्थानको लेकर कहा गया है। अब गौतम रवामी प्रसुले ऐसा पूछते हैं 'चरित्ताचरित्त लधियाण भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव चारित्राचारित्र लब्धिवाले-देशविरतिवाले होते हैं, वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयना' हे गौतम! देगविरति वाले जीव 'नाणी, नो अन्नाणी' ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं होते हैं। इनमें 'अत्गया दुनाणी, अत्गझ्या निनाणी' कितनेक देशविरतिवाले जीव दो ज्ञानबाले होते हैं और कितनेक दाविरतिवाले जीव तीन ज्ञानवाले होते हैं । 'जे दुनाणी, ते आभिणियोहियनाणी य, અને તેમનામાં જે પાચ જ્ઞાન ભજનાથી કહેલ છે તે ૧૧ અગ્યારમા અને ૧૨ બારમા गुस्यानने सपने ॥ ४९ 2 प्रश्न- चरित्ताचरित्तलतियाणं भंते जीवा किं ની સત્તા હે ભગવન! જે જીવ ચારિત્રાચારિક લબ્ધિવાળા દેશવિરતવાળા હોય છે त ज्ञानी जय छ । मनानी डाय छ ? :- 'गोयमा' के गीतमा देशपिरतावाणा ७३ 'नाणी, नो अन्नाणी' ज्ञानी हाय छे मज्ञानी खाता नथी 'अत्थेगइया दुन्नाणी अत्थेगडेया तिन्नाणी, 32 विरतावाणा में शानदाणा भने मात्र सानागा सय छ ‘जे दुन्नाणी ते आभिणिनोहियनाणी य सुयनाणी ग'
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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