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________________ ४४२ भगवतीसूत्रे अज्ञानिनोऽपि, ये ज्ञानिनस्ते सन्ति एकके द्विज्ञानिनः, सन्ति एकके एकज्ञानिनः, ये द्विज्ञानिनस्ते आभिनिवोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिन, ये एकज्ञानि - नम्ते केवलज्ञानिनः ये अज्ञानिनस्ते नियमात् बचज्ञानिनः, तद्यथा - मत्यज्ञानिनश्च श्रुताज्ञानिनश्च चक्षुरिन्द्रिय- घ्राणेन्द्रियाणां लब्धिकानाम् अलब्धिकानाञ्च यथैव श्रोगेन्द्रियस्य, जिवेन्द्रियलव्धिकानां चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि अन्नाणी वि) ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी होते हैं । (जे नाणी, अथेगया दुन्नाणी, अत्थेगड्या एग नाणी) जो ज्ञानी होते हैंउनमें कितनेक दो ज्ञानवाले होते हैं और कितनेक एक ज्ञानवाले होते हैं (जे दुन्नाणी, ते आभिणिबोहियनाणी, सुगनाणी) जो जीव दो ज्ञानवाले होते हैं, वे आभिनियोधिक ज्ञानवाले होते हैं और श्रुतज्ञानवाले होते हैं । (जे एगनाणी - ते केवलनाणी) जो एकज्ञानवाले होते हैं वे केवलज्ञानवाले ही होते हैं । (जे अन्नाणी - ते नियमा दुअन्नाणी तजहा मइ अन्नाणी य, सुय अन्नाणी य) जो अज्ञानी होते हैं वे नियमसे दो अज्ञानवाले होते हैं- जैसे- मत्यज्ञानवाले और अताज्ञानवाले ( चक्खिदिय वार्णिदियाणं लडिया णं अलद्भियाण य-जहेव सोइ दियस्स, जिभिदिय लद्धियाणं चत्तारिजाणा तिन्नि य अन्नाणाणि भयणाए ) चक्षुइन्द्रिय और घ्राणइन्द्रिय for और इनकी अलब्धिवाले जीव श्रोत्रेन्द्रियलब्धिवाले जीवोंकी तरह से चार ज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले होते हैं ऐसा जानना પણ હાય છે अज्ञानी होय हे 'जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी अत्येगइया एगनाणी ' જે જ્ઞાની હાય છે તેએમા કેટલાક એ જ્ઞાનવાળા અને કેટલાક એક જ્ઞાનવાળા હેાય છે. जे दुन्नाणी ते आभिणित्रोहियनाणी सुयनाणी ' ? लव मे ज्ञानवाणा होय छे. त्यो अलिनिमोधिक ज्ञान भने श्रुतज्ञान खेम मे ज्ञानवाणा होय छे 'जे एगनाणी ते केवलनाणी ' જે એક જ્ઞાનવાળા હાય છે તે કેવળજ્ઞાનવાળા જ હોય છે. जे अन्नाणी ते नियमा दुन्नाणी तं जहा मइअन्नाणीय सुयअन्नाणीय ' જે અજ્ઞાની હાય તે નિયમથી એ અજ્ઞાની હોય છે તેને મત્યજ્ઞાન અને શ્રુતઅજ્ઞાન એમ એ અજ્ઞાન હેાય છે. चक्खिदियघार्णिदियाणं लडियाणं अलद्धियाणय जत्र सोइंदियस्स जिभिदियलद्भियाण चत्तारि नाणाई तिन्नि य अन्नाणाणी भयणाए ' यक्षु द्रिय मने घाणु द्रियसम्धिवाणा भने ते सिवायना वा श्रोत्रेन्द्रिय લબ્ધિવાળા જીવાની માફક ચાર જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હોય છે તથા તે ખને 6 ,
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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