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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ सू. ९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४३७ खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? गौतम ! ज्ञानिनः, केवलवर्णानि चत्वारि ज्ञानानि भजनया, तस्य अलब्धिकानाम् पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि, च अज्ञानानि भजनया, एवं यथा सामायिक चारित्रलब्धिकाः अलब्धिकाश्र भणिताः एवं यावत् यथाख्यात चारित्रलब्धिकाः, अलब्धिकाश्च भणितव्याः, नवरं 'चरितद्वियाणं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी' इत्यादि । . सूत्रार्थ - (चरितलद्विया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी) हे. भदन्त ! जो जीव चारित्रलब्धिवाले होते हैं, ये क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (पंच नाणाई भयणाए) चारित्र लब्धिवाले जीव भजनासे पांच ज्ञानवाले होते हैं । (तस्स अलद्विया णं मणपज्जवनाणवज्जाई चत्तारिनाणाई तिन्नि य अन्नाणाई भयपाए ) जो जीव चारित्रलब्धिवाले नहीं होते हैं उनमें मनः पर्यवज्ञान को छोडकर चार ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजना से होते हैं । (सामाइयचरितलद्धियाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अम्भाणी) हे भदन्त ! सामायिक चारित्रलब्धिवाले जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (नाणी, केवलवज्जाई चत्तारि नाणाई भयणाए) सामायिक चारित्रलब्धिवाले ज्ञानी होते हैं । इनमें भजनासे केवलज्ञानको छोड़कर चार ज्ञान होते हैं । (तस्स अलद्धियाणं पंचनाणा तिनिय अन्नाणाइ भयणाए, एवं जहा सामाइयचरित्त L ' चरित्तलद्धियाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ' प्रत्याधि , J { सूत्रार्थ - 'चरित्तलद्रियाणं संते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ' -लहन्त ! ? व यारित्र्यसम्धिवाणा होय छे ते शुं ज्ञानी होय छे } अज्ञानी ? ' गोयमा हे गौतम । ' पंचनामाई भयणाएं ' चारित्र्याविवाणा लव लगनाथी पांथ ज्ञानवाणा હેય છે. तस्स अलद्धियाणं मणपज्जवनाणवज्जाई चत्तारिनाणार तिन्निय अन्नाणाई भयणाए જે જીવ ચારિત્ર્યલબ્ધિ વિનાના હોય છે. તેમનામાં મનઃ વ ज्ञान छोडीने यार ज्ञान तथा त्रयु अज्ञान लगनाथी होय छे. ' सामाइय चरित - लद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नागी ? हे भगवन् ! सामायि यारित्र्य सम्धिवाला का ज्ञानी होय छे अज्ञानी ? ' गोयमा ' हे गौतम! ' नाणी केवल " 4 जाई' चत्तारि नाणाइ भयणाए ' सामायिक यात्रिय सन्धिवाणा ज्ञानी न होय छे. તેમનામાં ભજનાથી કેવળ જ્ઞાન ઘેાડીને ચાર જ્ઞાન હાય છે. तस्स अलद्धियाणं पंचनागाइ तिन्नि अन्नाणाई भयणाए एवं जहा सामाइयचरित्तलद्धिया अलद्धिगाय भणिया एवं नाव अहखाय चरिचलडिया अलद्धियाय
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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