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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ स. ७ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४२५ नियमतः केवलज्ञानलब्धिका एकज्ञानिनः केवलज्ञानिन एव भवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'तस्स अलद्धिया णं पुच्छा ?" ऐ भदन्त ! तस्य केवलज्ञानस्य अलब्धिका लब्धिरहिताः किं ज्ञानिनो भवन्ति ? अज्ञानिनो वा ? इति पृच्छा, भगवानाह - 'गोयमा ! नाणी चि, अन्नाणी वि,' हे गौतम! केवलज्ञानलब्धिरहिता जीवाः ज्ञानिनोऽपि भवन्ति, अज्ञानिनोऽपि तत्र 'केवलनाणबज्जाई' चत्तारि णाणाइ, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' केवलज्ञानवजनि चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि च भजनया भवन्ति, तथाच केवलज्ञानालब्धिकानां मध्ये ये ज्ञानिनस्ते केचन मतिश्रुतज्ञानिनः केचन मतिश्रुतावधिज्ञानिनः, मतिश्रतमनः पर्यवज्ञानिनो वा केचन तु मतिश्रुतावधिमनः पर्यवज्ञानिनो अज्ञानी नहीं होते और न वे दो आदिज्ञानवाले ही होते हैं । किंतु एक केवलज्ञानवाले ही होते हैं। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछने हैं कि 'तस्स अलद्वियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! जो जीव केवलज्ञानलब्धि से रहित होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं, या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'नाणी वि अन्नाणी वि' केवलज्ञानलब्धिसे रहित जीव ज्ञाली भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । इनमें जो ज्ञानी होते हैं वे 'केवलनाणवज्जाहूं चत्तारि णाणाइ तिनि अन्नाणाई भगणाए ' भजनासे केवलज्ञानवर्जित चार ज्ञानवाले होते हैं और जो अज्ञानी होते हैं वे भजनासे तीन अज्ञानवाले होते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि केवलज्ञानलब्धिक जीवोंके बीच में जो ज्ञानी होते हैं वे कितनेक तो मतिज्ञान और श्रुतज्ञानवाले होते हैं और कितनेक मति, श्रत, अवधिज्ञानवाले होते हैं, या मति श्रुत, मनः पर्यवज्ञानवाले होते हैं તેએાએ આદિજ્ઞાનવાળા હાતા નથી प्रश्न :- 'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा હૈ બદન્ત ! જે જીવ કેવળજ્ઞાનલબ્ધિરહિત હેાય છે તે નાની હાય છે કે અજ્ઞાની ? " ७ . - गोयमा हे गौतम ' 'नाणी वि अन्नाणि वि' ठेवणज्ञानसम्धिथा रहित જીવ જ્ઞાની પણ હાય છે અને અજ્ઞાની પણ હાય છે, તેએામા જે જ્ઞાની હાય છે તે 'केवलनाणवज्जाई, चत्तारिनाणाई, तिनि अन्नाणाइ भयणाएं' भन्ननाथी ठेवणજ્ઞાન રહિત ચાર જ્ઞાનવાળા હાય છે અને મે અજ્ઞાની હોય છે ને ભજતાથી ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હેાય છે. કહેવાનુ તાત્પર્ય એ છે કે કેવળજ્ઞાન લબ્ધિવાળા જીવામા જેએ જ્ઞાની હાય છે તે પૈકી કેટલાક મતિજ્ઞાન અને શ્રુત જ્ઞાનવાળા અને મતિ-શ્રુત અને વિધજ્ઞાનવાળા હોય છે. અગર મતિ, શ્રુત, અને મનઃ૫ વજ્ઞાનવાળા હેાય છે તથા
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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