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________________ - प्रमेगचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ मु.७ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४१७ हे गौतम ! ज्ञानलब्धिमन्तो जीवा ज्ञानिनो भवन्ति, नो अज्ञानिनः, तत्र सन्ति एकके केचन द्विज्ञानिनः, एवं सेपां पञ्च ज्ञानानि भजनया-केचन त्रिज्ञानिनः, केचन चतुर्सानिनः, केचन एकज्ञानिनः, तत्रापि पूर्ववत् एकज्ञानिनः केवलज्ञानिनो भवन्ति । गौतमः पृच्छति- 'तस्स अलद्धियाणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी?' हे भदन्त ! तस्य ज्ञानस्य अलब्धिका अलब्धिकमन्तो ज्ञानलब्धिरहिताः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति ? अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह- 'गोयमा! नो नाणी, अन्नाणी 'हे गौतम ! ज्ञानलब्धिरहिता जीवाः नो ज्ञानिनो भवन्ति, अपितु अज्ञानिन एव भवन्ति, तत्र 'अत्थेगइया दुअन्नाणी तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए' सन्ति एकके केचन अज्ञानिनो जीवा द्वयज्ञानिनो अज्ञानी नहीं होते । जो ज्ञानी होते हैं उनमें कितनेक दो ज्ञानवाले होते हैं, कितनेक तीन ज्ञानवाले होते हैं, कितनेक चार ज्ञानवाले होते हैं और कितनेक एक ज्ञानवाले होते हैं। जो एक ज्ञानबाले होते हैं वे केवलज्ञानवाले होते हैं- दो ज्ञानवाले जो होते हैं वे भतिज्ञान और श्रुतज्ञालवाले होते हैं इत्यादि सब कथन पहिले जैसा जानना चाहिये । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'तस्ल अलद्धिथाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी? हे भदन्त ! जो ज्ञानलब्धिसे रहित होते हैं- ऐसे जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो नाणो अन्नाणी' ज्ञानलब्धि रहित जीव ज्ञानी नहीं होते हैं, किन्तु अज्ञानी ही होते हैं। इन अज्ञानी जीवोमें 'अत्थेगड्या दु अन्नाणी तिन्नि अण्णाणाणि अयणाए' कितनेक जीव दो अज्ञानवाले होते हैं और कितनेक अज्ञानी जीव જ્ઞાની હોય છે તેમાં કેટલાક બે જ્ઞાનવાળા અને કેટલાક ત્રણ જ્ઞાનવાળા અને કેટલાક ચાર જ્ઞાનવાળા અને કેટલાક એક જ્ઞાનવાળા હોય છે જે એક જ્ઞાનવાળા હોય છે-તે કેવળજ્ઞાનવાળા જ હોય છે જે બે જ્ઞાનવાળા હોય છે તે મતિજ્ઞાન અને શ્રત જ્ઞાનવાળા हाय ते प्रत्याहि समययन पडेसानी म सभ से प्रश्न - तस्स अलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' गवना ज्ञान eDE १२ना खाय छ शुजानी होय छे भज्ञानी होय छ ? :- 'नो नाणी अन्नाणी' गानसम्म हीत शानी नही पर मज्ञानी छ भने ते मज्ञानीयामा 'अत्थेगइया दअन्नाणी, तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए' 1 4 में अचानवाणा, કેટલાક ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હોય છે એ રીતે ત્રણ અજ્ઞાનવાળાની ભજના છે પ્રશ્ન : HTHHTHHTHHTHHATHI
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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