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________________ } न 1 प्रमेयचन्द्रिका टीका श८ उ. २ . ५ ज्ञानभेद निरूपणम् ३८ , जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? भगवानाह 'तिभि नाणा, तिि अन्नाणा भयणाए' हे गौतम ! अपर्याप्तकानां समुच्चयजीवानां भजनयात्री ज्ञानानि त्रीणि अज्ञानानि च भवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'अपज्जत्ता गं भंते नेरइया किं नाणी, अन्नाणी ? हे भदन्त ! अपर्याप्ताः खलु नैरयिकाः f ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? भगवानाह - 'तिन्नि नाणा नियमा, तिनि अन्नाणी भरणाए, एवं जाव धणियकुमारा' हे गौतम अपर्याप्तकने र विका सम्यग्दृशां त्रीणि ज्ञानानि नियमात् नियमतो भवन्ति, मिथ्यादृष्टिनां तु श्री अज्ञानानि भजनया भवन्ति, सम्यग्दृशो नियमतस्त्रिज्ञानिनो भवन्ति, मिथ्यादृशस् भजनया केचित् कदाचित् व्यज्ञानिनः केचित् कदाचित्तु यज्ञानि भवन्ति, 'पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया जहा एगिंदिया' अपर्याप्तकाः पृथिवी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं 'तिनि नाण तिनि अन्नाणा भयणाए' हे गौतम! जो जीव अपर्याप्त होते हैं उन भजनासे तीन ज्ञान औरतीन अज्ञान होते हैं। अब गौतमस्वामी मथुरं ऐसा पूछते हैं 'अपज्जत्ताणं भंते ! नेरइया किंनाणी अन्नाणी' हे भदन्त जो नारकजीव अपर्याप्त होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञार्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'तिन्नि नाणा नियमा, तिन्निअन्नाण भवणाए एवं जावणियकुमारा' हे गौतम! जो अपर्याप्त नारकजी सम्यग्दृष्टि होते हैं उनके तीन ज्ञान तो नियमसे होते हैं । और ज नारकजीव मिध्यादृष्टि होते हैं उनके तीन अज्ञान भजनासे होते है atara कभी तीन अज्ञान और किन्हींके कभी दोअज्ञान होते हैं इसी तरहसे यावत् स्तनितकुमारों के भी जानना चाहिये। 'पुढविका इमा जाव चणस्सइकाइया जहा एगिदिया' अपर्याप्तपृथिवीकायिक यावत ज्ञानी होय छे } अज्ञानी ? - ' तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए હું ગૌતમ ! જે છત્ર અપર્યાપ્તક હેાય છે. તેગ્માને ભજતાથી ત્રણ જ્ઞાન અને ત્રણ અજ્ઞા હાય છે 1848- अपज्जत्ताणं भंते नेरइया कि नाणी अन्नाणी ' હું ભગવા જે નારક છત્ર અપર્યાપ્તક હાય છે તે શું નાની હાય છે કે અજ્ઞાની હોય છે ' तिन्नि नाणा नियमा तिन्नि अन्नाणा भयणाए एवं जात्र थणियकुमारा હે ગૌતમ ! જે અપર્યાપ્તક નારક જીવ સભ્યષ્ટિવાળા હાય છે તેઓને નિયમથી ત્ર જ્ઞાન હોય છે અને જે નારકજીવ મિથ્યા દૃષ્ટિવાળા છે. તેઓને ત્રણુ અજ્ઞાન ભજનાર્થ હોય છે. એટલે કેટલાકને કોઇ વખત ત્રણ અનન અને કેટલાકને એ અજ્ઞાન હોય છે गोन रीते यावत्-स्तनितकुमार पर्यंत सम बेनुं पुढविक्काडया जाव वणम्सइकाइय 6
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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