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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८. उ.२ म. ५ ज्ञानभेदनिरूपणम् ২৬৩ केवलज्ञानलक्षणेकज्ञानिनः पूर्वप्रतिपादितास्ता नोसूक्ष्मा नोवादरा अपि जीवाः केवलज्ञानलक्षणेकज्ञानिनो भवन्ति, न तु द्वयादिज्ञानिनः ।। अथ पप्ठं पर्याप्तकद्वारमाश्रित्य पृच्छति-'पजत्ता णं मंते ! जीवा कि नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! पर्याप्ताः खलु जीवाः कि ज्ञानिनो भवन्ति किंवा अज्ञानिनो भवन्ति, भगवानाह 'जहा-सकाइया' यथा सकायिका भजनया पञ्चज्ञानिनः त्र्यजानिनः प्रतिपादितास्तथा पर्याप्तका अपि भजनया पञ्चज्ञानिनो भवन्ति केवलिनामपि पर्याप्तकतया पर्याप्तकानां सम्यग्दृयां भजनया एकद्वयादिज्ञानसंभवात, मिथ्यादृशां पर्याप्तकानांतु भजनया त्रीणि अज्ञानानि भवन्ति. गौतम पृच्छति'पज्जत्ता णं भंते ! नेरइया किं नाणी अन्नाणी हे भदन्त ! पर्याप्तकाः खलु प्रकारसे नोसूक्ष्म नोबादरजीव भी केवलज्ञानरूप एकज्ञानवाले ही होते हैं। दो आदिज्ञानवाले नहीं होते हैं । ___अब गौतमस्वामी छठे पर्याप्तद्वारको आश्रित करके प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'पजत्ता णं भंने ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' ? हे भदन्त ! जो पर्यासजीव हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'जहा सकाइया' हे गौतम ! जिस प्रकार सका यिक जीवोंको भजनासे पांच ज्ञानवाला और तीन अज्ञानवाला कहा गया है उसी प्रकारले पर्याप्तक जीव भी भजनासे पांचज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले होते हैं ऐसा जानना चाहिये । पर्याप्तक केवली भी होते हैं। इसलिये पर्याप्तक सम्यग्दृष्टियों में भजनासे एक, दो, तीन. आदि ज्ञान होते हैं तथा जो पर्याप्त जीव मिथ्यादृष्टि होते हैं उनके भजनासे तीन अज्ञान होते हैं। अव गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते है पज्जत्ता णं भंते ! नेरड्या किनाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! जो नारकતેજ રીતે નો સૂક્ષમ અને તે બાદર છવ પણ કેવળજ્ઞાનરૂપ એક જ્ઞાનવાળા હોય છે. આદિ જ્ઞાન તેમનામાં હોતું નથી. गौतम स्वामी । पर्याप्तमारने. हशान प्रभुने पूछे 'पज्जत्ताणं भंते जीवा किं नाणी अनाणी ? सतरे पर्याप्त ७१ डाय छ त तेजानी डायछ मज्ञानी ? उत्त२ 'जहा सकाइया' हे गीत २ शa સકાઇક ને ભજનાથી પાંચ જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા કહ્યા છે એજ રીતે પર્યાપ્ત છવ પણ ભજનાથી પાંચ જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હોય છે પર્યાપ્તક કેવળી પણ હોય છે. એટલા માટે પર્યાપ્તક સમ્યફષ્ટિએમાં ભજનાથી એક, બે, ત્રણ આદિ જ્ઞાન હોય છે. તથા જે પર્યાપ્તક જીવ મિયાદષ્ટિ હોય છે. તેઓને ભજનાથી अ५ मज्ञान डाय प्रश्न.- 'पज्जना णं भंते नेरड्या किं नाणी अनाणी'
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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