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________________ ३१२ भगवतीमूने कतिविघं प्रज्ञप्तम् ?, गौतम ! त्रिविध प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-मत्यज्ञानम्, श्रुताज्ञानम्, विभङ्गज्ञानम्, अथ किं तत् मत्यज्ञानम् ? मत्यज्ञानं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-अबग्रहो यावत् - धारणा, अथ किं सः अवग्रहः ? ? अवग्रहो द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-अर्थावग्रहश्च, व्यञ्जनावग्रहश्च, एवं यथैव आभिनिवोधिकज्ञानं तथैव, नवरम्-एकार्थिकवर्जम् यावत् - नोइन्द्रियधारणा, सैपा धारणा, तदेतत् 'सेत्तं केवलनाणे' इस पाठतक । (अन्नाणे णं भंते ! कहविहे पण्णत्ते) हे भदन्त ! अज्ञान कितने प्रकारका कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (तिविहे पण्णत्ते) अज्ञान तीन प्रकारका कहा गया है। (तंजहा) जैसे ( मइ अन्नाणे, स्तुय अनाणे, विभंगनाणे) मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, विभंगज्ञान (से कि त मड अन्नाणे) हे भदन्त ! मत्यज्ञान कितने प्रकारका कहा गया है ? (मइ अनाणे चउबिहे पण्णत्ते ) हे गौतम ! मत्यज्ञान चार प्रकारका कहा गया है (तंजहा) जो इस प्रकार है (उग्गहो जाव धारणे) अवग्रह यावत् धारणा (से किं तं उग्गहे) हे भदन्त ! अवग्रह कितने प्रकारका है ? (उग्गहे दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! अवग्रह दो प्रकारका है (तंजहा) जो इस प्रकार से है (अत्थोग्गहे वंजणोग्गहे य) एक अर्थावग्रह दुसरा व्यंजनावग्रह (एवं जहेव आभिणिबोहियनाणं तहेब) इस तरहसे जैसा कि नंदीसूत्र में आभिनिवोधिक ज्ञानके संबंधमें कहा गया है उसी तरहसे यहांपर सा छ तर शत सही या प स क्षेत्रा. यावत- सेतं केवलनाणे' से पा सुधाना हो सभ सेवा 'अन्नाणे णं भंते काविहे पन्नत्ते' हे भगवन! मज्ञान 3241 ना ४ा छ? 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहे पन्नत्ते मज्ञान नए २ना सा छे 'तंजहा ते मा प्रभारी छे. 'मइ अन्नाणे, सुय अन्नाणे, विभंगनाणे भत्यजान १, ताज्ञान २, भने विसंग मशान 3. 'से किंमइ अन्नाणे' उ मगपन भत्यज्ञान सा २र्नु हेर छ ? 'मइ अन्नाणे चउबिहे पण्णचे हे गौतम ! भत्यज्ञान यार प्राप्तुं ४हेर छे. 'तजहा' या प्रमाणे छे-'उग्गहो जाव धारणा' २५ यावत धारण! (से किं तं उग्गहे) हे भगवान् सवय 21 रन ? 'उग्गहे दविहे पण्णत्ते गौतम ! अपयड मे ४२ना छ. (तंजहा) मा प्रभारी छे-'अत्थोग्गहे व जणोग्गहे य' ये अविड मने मी व्यनिवड. एवं जदेव आभिनिवोहियनाणं तहेव' की शते नदीसूत्रमा मालिनिमाधि. ज्ञानना विषयमा ४ छे ते शेते माही पण सभा 'नवरं एगट्टियवज्जं जाव नो इंदिय धारणा, सेत्तं धारणा, सेत्तं मइ अन्नाणे' ५२तु विशेषता --Shochoochei.
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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