SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ सू. २ आशीविषस्वरूपनिरूपणम् २९५ विपो भवति, स किं भवनवासिदेवकर्माशीविषो भवति ? यावत् - वानव्यन्तरदेवकर्माशीविषो भवति ? ज्योतिषिकदेवकर्माशीविषो भवति ? वैमानिकदेवकर्माशीविषो भवति ? इति, भगवानाह-'गोयमा ! भवनवासिदेवकम्मासीविसे वि, वाणमंतरदेवकम्मासीविसे वि, जोइसियदेवकम्मासीविसे वि, वेमाणियदेवकम्मासीविसे वि' हे गौतम ! देवकर्माशीविषो भवनावसिदेवकर्माशीविषोऽपि भवति, वानव्यन्तरदेवकर्माशीविषोऽपि वा भवति, ज्योतिषिकदेवकर्माशीविषोऽपि वा भवति, वैमानिकदेवकर्माशीविषो वापि भवति । गौतमः पृच्छति – 'जइ भवणवासिदेवकम्मासीविसे, से कि अमरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे, जाव थणियकुमोर-जाव-कम्मासीविसे ? हे भदन्त ! यदि भवनवासिदेवकर्माशीविपो भवति, स किम् असुरकुमारभवनवासिदेवकम्मासीविसे जाव वेमाणियदेव कम्मासीविसे) क्या भवनवासीदेव कर्माशीविष हैं ? या यावत् वानव्यन्तरदेव कर्माशीविष हैं ? या ज्योतिषिकदेव काशीविष हैं ? या वैमानिकदेव काशीविप हैं ? भगवान् इसके उत्तरमें कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'भवणवासिदेवकम्मासीविसे वि, वाणमंतरदेव कम्मासीविसे वि, जोइसियदेव कम्मासीविसे वि, वेमाणियदेव कम्मासीविसे वि' भवनवासीदेव भी कर्माशीविष हैं, वानव्यन्तरदेव भी कर्माशीविष हैं, ज्योतिषिकदेव भी कर्माशीविष हैं, और वैमानिकदेव भी कर्माशीविष हैं। अब गौतमस्वामी प्रभुसे पूछते हैं 'जइ भवणवासिदेवकम्मासीविसे से किं असुरकुमारभवणवासीदेव कम्मासीविसे, जाच थणियकुमार जावकम्मासीविसे,) हे भदन्त ! यदि भवनवासीदेव कर्माशीविष हैं तो क्या असुरकुमारभवनवासीदेव कर्माशीविष हैं या यावत् नागकुमार, कामासविसे, शु सवनवासीहत भाशाविष छ? यावत व्यानवतव ४माशीवि५ छ ? ज्योतिष मानिव माशीवि५ छ ? 'गोयमा गौतम! 'भवणवासिदेव कम्मासीविसे वि वाणमंतरदेव कम्मासीपिसे वि जोइसियदेव कम्मासीविसे वि, वेमाणियदेव कम्मासीविसे वि' सपनवासी व्यानव्य तहेव, ज्योतिषिदेव भने मानिदेव ने सपा भासवि५ छे ५श्न- 'जड भवणवासिदेव कम्मासीविसे से कि अमुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे, जाव थणियकुमार जाव कम्मासीविसे 3 मावन् ! न भवनवासीर मशीवि५ छे तोश मसु२७भार सपनवासी मशीवि५ छ ? 3 यावत - नागकुमार, सुवर्णकुमार,
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy