SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्रे मनुष्यकर्माशीविषो नो समूच्छिममनुष्यकर्माशीविषो भवति, अपितु गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यकर्माशीविषो भवति, ' एवं जहा वेउन्दियसरीरं जाव पज्जतसंखेज्जवासाज्य कम्मभूमियगन्भवक तिय मणुस्तकम्मासीबिसे, नो अपज्जतजाव कम्मासीविसे ' एवं यथा वैक्रियशरीरं प्रज्ञापनाया एकविंशतितमे शरीरपदे प्रतिपादितं तथैव यावत् मनुष्यकर्माशीविष पर्याप्तकसख्येयवर्षायुककर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्यकर्मागोविषो भवति, नो अपर्याप्तक - यावत्-संख्येयवर्षायुककर्मभूमि जगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्य कर्माशीविषो भवति ||१|| २८८ मूलम् - जइ देवकम्मासीविसे किं भवणवासि देव कम्मासीविसे जाव माणियदेवकम्मासीविसे ? गोयसा ! भवणवासिदेवकम्मासीविसे, वाणमंतरदेव कस्मासीविसे, जोइसियदेव-कम्मासीविसे, वैमाणियदेवकस्मासीविसे, जइ भवणवासिदेव हैं वे कर्माशीविष नहीं हैं, किन्तु 'गन्भवक तियमणुस्सकम्मासीबिसे' जो गर्भज जन्मवाले मनुष्य है वे कर्माशीविष हैं । 'एवं जहा उच्चियसरीरं जाव पज्जत्तसंखेज्जवासाउयकस्मभूमियगन्भवक तिय मनुस्स कम्मासीविसे, नो अपजत्त जाव कम्मासीविसे' जिस प्रकार से प्रज्ञापना के २१ वें अवगाहना संस्थान पद में वैक्रिय शरीरका प्रतिपादन किया गया है उसी प्रकारसे जो मनुष्य पर्याप्त हैं, संख्यातवर्ष की आयुवाला है, कर्मभूमिज है, और गर्भज है ऐसा वह मनुष्य कर्माशीविष है- अपर्याप्तक सख्यातवर्षकी आयुवाला कर्मभूमिज गर्भजमनुष्य कर्माशीविष नहीं है | सू० १॥ मणुस्स कम्मासीविसे' ? गर्लन भन्भुवाणा मनुष्य ते उर्भाशीविष छे. 'एवं जहा वेत्रिय सरीरं जाव अपज्जत्त संखेज्जवासाउय कम्मभूमियान्भवक्कंतियमणुस्तकम्मासीविसे, तो अपज्जत जाव कम्मासीविसे' ? प्रभा प्रज्ञापनाना ૨૧ માં અવગાહના સંસ્થાન પદમા નૈષ્ક્રિય શરીરનું પ્રતિપાદન કર્યું છે તેજ રીતે જે મનુષ્ય પર્યાપ્તક છે. અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા છે. કર્મભૂમિજ છે અને ગર્લ્સેજ છે એવા મનુષ્ય કર્માંશીવિષે છે. અપર્યાપ્તક સંખ્યાત વની આયુષવાળાં કભૂમિજ ગભુજमनुष्य उर्भाशीविष होता नथी. ॥ भू. १ ॥
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy