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________________ २४२ भगवतीसूत्रे छाया-चत्वारि भदन्त ! द्रव्याणि किं प्रयोगपरिणतानि, मिश्रपरिणतानि विस्त्रसापरिणतानि ? गौतम ! प्रयोगपरिणतानि वा, मिश्रपरिणतानि वा, विसासापरिणतानि वा,अथवा एक प्रयोगपरिणतं त्रीणि मिश्रपरिणतानि १, अथवा एकं प्रयोगपरिणत त्रीणि विस्त्रसापरिणतानि २, अथवा द्वे प्रयोगपरिणते, द्वे मिश्रपरिणते ३, अथवा द्वे प्रयोगपरिणते, द्वे विस्त्रमा परिणते ४, अथवा त्रीणि प्रयोगपरिणतानि,एक मिश्रपरिणतम् ५. अथवा त्रीणि प्रयोगपरिणतानि, एक विलसापरिणतं 'चत्तारि भंने ! दव्या किं पओगपरिणया' इत्यादि । सूत्रार्थ-( चत्तारि भंते ! दवा किं पओगपरिणया) हे भदन्त ! चार द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं ? या मिश्रपरिणत होते हैं ? या विसापरिणत होते हैं ? (गायमा) हे गौतम ! (पओगपरिणया वा, मीसा परिणया वा, वीमसापरिणया वा) चार द्रव्य प्रयोगपरिणत भी होते हैं, मिश्रपरिणत भी होते हैं, विस्त्रसा परिणत भी होते हैं (अहवा एगे पोगपरिणए, तिम्नि सीमापरिणया) अथवा एकप्रयोगपरिणत होता है। बाकीके तीन मिश्रपरिणत होते हैं । (अहवा एगे पओगपरिणए, तिन्नि,वीससापरिणया) अथवा एकप्रयोगपरणित होता है बाकोके तीन विस्रलापरिणत होते हैं २, (अह्वा दो पओगपरिणया, दो मीसापरिणया३) अथवा दो प्रयोगपरिणत होते हैं और दो मिश्रपरिणत होते हैं ३, (अहवा दो पओगपरिणया, दो वीससा परिणए४) अथवा दो प्रयोगपरिणत होते हैं दो विस्रसापरिणत होते हैं ४, (अहवा तिन्नि पओगपरिणया, एगे मीमापरिणए ५) अथवा तीन प्रयोगपरिणए होते हैं 'चत्तारि भंते दव्या किं पओगपग्णिया इत्यादि" । सुत्राथ-'चत्तारि भंते दव्या किं पओगपरिणया' हे भगवन् यार द्रव्यो | अयोगपरित हाय छ भित्र परिणत हाय पिससा परिणत हाय छे 'गोयमा' डे गौतम ! 'पओगपरिणया मीसापरिणया वीमसा परिणया वा' या२ द्रव्य अयोगपति , मिश्र पशिशुत भने विससा परिणत होय छे. 'अहवा एगे पओगपरिगए तिन्नि मीमा परिणयो' अथवा मे प्रयोगपरिणत डाय छ भने माडीना नए मिश्र परिणत डाय छ ? ' अहवा एगे पओगपरिणए तिन्नि वीससा परिणया' અથવા એક પ્રયોગ પરિણુત હોય છે બાકીના ત્રણ વિઐસા પરિણત હોય છે ? 'अहवा दो पोगपरिणया, दो मीसा परिणया' मथा मे द्रव्य प्रयोगपरिणत हाय छ भने मे मिश्रपरिणत हाय के 3 'अहवा दो पओगपरिणया दो वीससा परिणया' मथवा द्रव्या प्रयोग परिणत य छ,म विससा परिणत डायछे ४
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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