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________________ २१६ भगवतीसो आरम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणतम्, एकम् अनारम्भसत्यमनःप्रयोगपरिणतम्, एवम् एतेन गमकेन द्विकसंयोगेन ज्ञातव्यम्, सर्वे संयोगाः यत्र यावन्तः उत्तिष्ठन्ते ते भणितव्या यावत् सर्वार्थसिद्धकइति ये मिश्रपरिणते किं मनोमिश्रपरिणते ? एवं मिश्रपरिणते अपि ये विस्त्रसापरिणते किं वर्णपरिणते, गन्धपरिणते ? एवं ओगपरिणया वा) सत्यमनःप्रयोगपरिणत वे दो द्रव्य आरंभसत्यमनःप्रयोगपरिण भी होते हैं यावत् असमारंभ सत्यमनःप्रयोगपरिणत भी होते हैं । (अहवा एगे आरंभ सच्चमणप्पओगपरिया) अथवा एकद्रव्य आरंभ सत्यमन:प्रयोगपरिणत होता है (एगे अणारंभसच्चमणप्पओगपरिणया) दूसरा अनारंभ सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है । (एवं (एएणं गमएणं दुयसजोगेणं नेयव्वं) आरंभसत्यमन:प्रयोगादि पददर्शित हिकसंयोगवाले अभिलापक्रमसे अन्य संरंभ आदि चारोंका द्विद्रव्य जानना चाहिये । (सव्वे संजोगा जत्थ जत्थिया उठेति, ते भाणियन्या जाव सव्वट्ठसिद्धगई) इस तरह जहां जितने द्विकसंयोग होवें उतने सरद्रिकसंयोग कहना चाहिये यावत् सर्वार्थसिद्ध वैमानिकदेवतक (जइ मीसा परिणया किं मणमीसापरिणए) हे भदन्त ! यदि वे दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं तो क्या वे मनोमिश्रपरिणत होते हैं इत्यादि ? ( एवं मीसा १० वि०) हे गौतम ! जैसा प्रयोग परिणत के संबंधमें कहा गया है उसी तरहसे मिश्रपरिणतके संबंधमें भी પ્રયોગ પરિણત તે બે દ્રવ્ય આર ભસત્યમનપ્રયોગ પરિણત પણ હોય છે યાવતमसभा सत्यमान प्रयोग परिक्ष्यत पर डाय छे (अहवा एगे आरंभसच्चमणप्पओगपरिणया) अथवा मे द्रव्य २मा सत्यमनप्रयाग परिणत हाय छे ( एगे अणारंभ सच्चमणप्पओगपरिणया) भानु मना२ म सत्यमनप्रयोग परिणत हाय छ एवं ए एणं गमएणं दुयसंजोगेणं नेयव्वं ) मार स सत्यमनप्रयाही पहाभा मतावेत દિકસાયેગવાળા અભિલાપના કમથી અન્યસંરભઆદી રાણેના બે પ્રકારના દ્રવ્ય જાણું सेवा (सव्वे संजोगा जत्थ जत्थिया उठेति ते भाणियव्वा, जाव सबट्ठसिद्ध T) એ રીતે જ્યાં જેટલા દ્વિસંગ હોય ત્યાં તેટલા બધા બ્રિકસંગ કહેવા જોઈએ यावत् - सर्वार्थ सिद्धि विभानवासी ३५ सुधा (जेडमीसा परिणया कि मणमीसा परिणए ) है भगवन्ने ते मे द्रव्य मिश्रपरिणत जाय तो शुत भने।मश्र पारत डाय छ ? त्याहि ( एवं मीसा प. वि.), गौतमबु प्रयोग परिणतना समयमा युछे से शत मिश्र परिणतना समयमा upy ne (जइ वीससा परिणया किं वन्न परिणया, गंधपरिणया) हे भगवन् ले मे मे द्रव्य विससा परिश्त હેય છે તે શું ? તે વર્ણરૂપથી પરિણત હોય છે અગર ગંધરૂપથી પરિણત હેય છે ?
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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