SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. १ सू. २० सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् २०९ महुररसपरिणए वा' हे गौतम ! रसपरिणत द्रव्यं तिक्तरसपरिणत वा, यावत्कपायरसपरिणत वा, कटुरसपरिणतं वा, अम्लरसपरिणत वा; मधुररसपरिणत वा भवति । गौतमः पृच्छति-'जइ फासपरिणए किं कक्खडफासपरिणए-जाव लुक्खफासपरिणए ?' हे भदन्त ! यव्य स्पर्शपरिणत तत् किं कर्कशस्पर्शपरिणतं यावत्-मृदुस्पर्शपरिणत, शीतोष्णगुरुलघुस्पर्शपरिणत, स्निग्धस्पर्श परिणतं रूक्षस्पर्शपरिणत भवति ? भगवानाह-गोयमा ! कक्खडफासपरिणए वा, जाव लुक्खफासपरिणए वा' हे गौतम ! स्पर्शपरिणत द्रव्य कर्कशस्पर्शपरिणतं वा, यावत् - स्निग्ध-रूक्षस्पर्शपरिणत वा भवति । गौतमः वा, जाव महुररसपरिणए वा' इसरूपसे परिणत हुआ वह द्रव्य तिक्तरसरूपसे भी परिणत होता है यावत् कषायरसरूपसे भी परिणत होता है, कटुरसरूपसे भी परिणत होता है, अम्लरसरूपसे भी परिणत होता है, मधुररसरूपसे भी परिणत होता है। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'जइ फासपरिणए, किं कक्खडफासपरिणए, जाव लुक्खफासपरिणए' हे भदन्त ! जो द्रव्य स्पर्शरूपसे परिणत होता है वह क्या कर्कशस्वरूपसे परिणत होता है, यावत् मृदुस्पर्शरूपसे परिणत होता है, या शीत, उष्ण, गुरु, लघु, स्पर्शरूपसे परिणत होता है ? या स्निग्धरूपस्पर्श से परिणत होता है ? या रूक्षस्पर्शरूपसे परिणत होता है ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम! 'कक्वडफासपरिणए वा जाव लुक्खफासपारणए वा' स्पर्शरूपसे परिणत हुआ वह द्रव्य कर्क शस्पर्शरूपसे भी परिणत होता है, यावत् उत्तर- 'गोयमा' हे गौतम ! 'तित्तरसपरिणए वा, जाव महररम परिणए वा रसथी परिणत यये तेय तीमा २०३५थी पर परिणत हाय छे. થાવત પદથી પાક રસરૂપથી પણ પરિણત હેય છે કટુરસરૂપથી પણ પરિણત હેય છે. ખાટા રસ૩૫થી પણ પરિણત હોય છે અને મીઠારસરૂપથી પણ પરિણત હોય છે प्रश्न- 'जइ फासपरिणए कि कक्खडफासपरिणए, जाव लुकखफास परिणए ' भगवन ने द्रव्य २५० ३५थी परिणत उय ते शु ४ाय-४४०३५थी પરિણત હોય છે ? યાવત મૃદુસ્પર્શરૂપથી પરિણત હોય છે? અગર ઠડા ઉના ભારે હળવા સ્પર્શરૂપથી પરિણત હોય છે ? અગર નિગ્ધરૂપ (ચીકાશવાળા) રસથી પરિણત હોય છે અથવા કઠોર (લૂખા સ્પર્શરૂપથી પરિણત હોય છે? उत्त२ - 'गोयमा!' हे गौतम! 'कक्खडफासपरिणए वा जाव लुक्खफासपरिणए वा २५० थी 4 परिणत येते द्रव्य १२२५२३५थी पर
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy