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________________ " प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ सू. २० सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् २०७ rear' हे गौतम ! विस्रमापरिणतं द्रव्यं वर्णपरिणत वा गन्धपरिणत वा, रसपरिणत वा, स्पर्शपरिणत वा संस्थानपरिणत वा भवति । गौतमः पृच्छति'ज परिणe किं कालवम्न परिणए, नील- जाव- सुकिल्लन्नपरिणए ? हे भदन्त । यद् द्रव्यं वर्णपरिणतं तत् किं कालवर्णपरिणतं, नीलवर्णपरिणतं यावत्-लोहितवर्णपरिणत हरिद्रावर्णपरिणत, शुक्लवर्णपरिणत भवति ? भगवानाह - 'गोयमा ! कालवण्णपरिणए जाव सुविकल्लवन्नपरिणए' हे गौतम! वर्णपरिणत ं द्रव्यं कालवर्णपरिणत, यावत्-नीलवर्णपरिणत, लोहितवर्णपरिणत, हरिद्रावर्ण परिणत, विसा परिणत वह द्रव्यवर्णरूप से भी परिणत होता है, गन्धरूपसे भी परिणत होता है, रसरूपसे भी परिणत होता है, स्पर्श रूपसे भी परिणत होता है, संस्थानरूपसे भी परिणत होता है । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछ रहे हैं कि 'जड़ वन्नपरिणए किं कालवन्नपरिणए, नील जाव सुकिल्लन्नपरिणए' हे भदन्त ! जो क्रय वर्णरूप से परिणत होता है वह क्या कालावर्णरूप से परिणत होता है ? या नीलवर्णरूप से परिणत होता है ? या यावत् लोहितवर्णरूप से परिणत होता है, या हरिद्रावर्णरूप से परिणत होता है, या शुक्लवर्णरूप से परिणत होता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि 'गोसा' हे गौतम ! ' कालवर्णपरिणए जाव सुक्किलवण्णपरिणए' वर्णरूप से परिणत हुआ वहद्रव्य कृष्णवर्णरूप से भी परिणत होता है, यावत् नीलवर्णरूप से, लोहितवर्णरूप से, हरिद्रा (पीले) वर्णरूप से, और शुक्लरसपरिणएवा, फासपरिणए वा, संठागपरिणए वा 'विश्वमा परिणत ते द्रव्य વણુ રૂપથી પિરણત હાય છે ગધરૂપથી પરિણત હોય છે, રસરૂપથી પશૃિત હોય છે, સ્પર્શરૂપથી પરિણત હાય છે અને સસ્થાનરૂપથી પરિણત પણ હાય છે हवे गौतम स्वामी दूरी पूछे छे - 'जइ बन्नपरिणए किं कालवण्णपरिए नीलजाव सुकिल्ल चन्नपरिणए' हे भगवान ने ते द्रव्य वागु३पथी पशिशुत હાય છે? તે દ્રવ્ય શ્યામવરૂપથી પરિણત હોય છે કે નીલવરૂપથી પરિણત હાય છે? અથવા ચાવત્ લેાહિત વર્ણ રૂપથી પરિણત હાય છે ? અથવા પીળાવરૂપથી પરિણત હોય છે ? અથવા શ્વેતવર્ણ રૂપથી પરિશુત હાય છે ?, उत्तर- 'गोयमा' हे गौतम! ' कालवम्नपरिणए जात्र सुकिल्लन्नपरिणए' વ રૂપથી પરિણત થયેલ તે દ્રવ્ય કાલવણું – શ્યામવણુ રૂપથી પરિશુત હાય છે यावत નીલવર્ણ રૂપથી, લેાહિતવ રૂપથી, પીત – પીળાવરૂપથી અને શ્વેતવર્ણીરૂપથી પણ પરિણત હાય છે
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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