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________________ भगवतीसूत्रे १८४ 1 जा परिणवा, पंचिदिय - जाव - परिणए वा' हे गौतम ! क्रियशरीरकायप्रयागपरिणतं द्रव्यम् एकेन्द्रिय यावत् द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय वैक्रियशरीरकाययोगपरिणत वा भवति पञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत वा भवति, तथा चात्र वायुकायं प्रतीत्य एकेन्द्रियपदमुक्तं तस्यैव वैक्रियत्वाद, गौतमः पृच्छति - ' जइ एर्गिदियजाव परिणए, कि वाउक्काइयएगिंदिय - जाव परिणए ? अवाक्काय एगिदिय - जाव परिणए ? हे भदन्त ! यद्द्द्रव्यम् एकेन्द्रिय यावत् क्रियशरीरकायप्रयोगपरिणतं तत् किम् वायुकायिकै केन्द्रिययावत् वैक्रियशरीरकायमयोगपरिणतं भवति ? अत्रायुकायिकै केन्द्रिय - यावत् कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम! 'एगिंदिय जाव परिणए वा, पचिदिय जाव परिणए वा' वैक्रिय शरीरकाय के प्रयोग से परिणत जो द्रव्य कहा गया है, वह द्रव्य एकेन्द्रिय जीव के यावत्- - वैक्रिय शरीरकाय प्रयोग से भी परिणत होता है, पंचेन्द्रियके वैक्रिय शरीरकाय प्रयोग से भी परिणत होता है । तथाच वायुकायिक जीव को लेकर ही वहां पर एकेन्द्रिय पद कहा गया हैं ऐसा जानना चाहिये । क्यों कि उसके ही वैक्रिय शरीर होता है । अप गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'जइ एगिंद्रिय जाव परिणए, किं वाउक्काइय एगिंदिय जाव परिणए, अवाक्काय एगिंदिय जाव परिणए' हे भदन्त ! यदि वह पुद्गल एकेन्द्रिय जीवके वैक्रिय शरीरकायप्रयोग से परिणत होता कहा गया है तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रिय जीवके वैक्रिय शरीरकाय प्रयोग से परिणत होता है या जो एकेन्द्रिय जीव वायुकायिक एकेन्द्रिय પ્રયાગથી પરિણત હોય છે ? ઉત્તર- " गोयमा " हे गौतम! एगिंदिय जाव परिणवा, पंचिदिय जाव परिणए वा " वेडियशरीरायप्रयोग परिषुत द्रव्य એકેન્દ્રિય જીવના વૈક્રિયારીરકયપ્રયાગથી પરિણત પણ હોય છે અને ચેન્દ્રિય પર્યંન્તના જીવેના વૈક્રિયશરીરકાયપ્રયાગથ' પરિણત પણ હોય છે અહી વાચુકાયિક જીવને જ એકેન્દ્રિય પદથી ગ્રહણ કરવાના છે, એમ સમજવું કારણ કે તેનેજ વૈક્રિયશરીર હાય છે गौतम स्वामीनी अश्न- " 'जइ एगिंदिय जाव परिणए, कि वाउक्काइय एदिय जाव परिणए, अवाउक्काइय एगिंदिय जाव परिणए ? " डे लहन्त । જો તે દ્રવ્ય પુદ્ગલ એકેન્દ્રિય જીવના ઐક્રિયશરીરકાયપ્રયાગથી પરિણત થયેલું ડાય છે, તે શુ તે વાયુકાયિક એકેન્દ્રિયના વૈક્રિયશરીરકાયપ્રયાગથી પ ત હાય છે? કે અવાયુકાયિક (વાયુકયિક સિવાયના) એકેન્દ્રિય જીવેાના વૈક્રિયારીરકાયપ્રયાગથી પરિણત હાય છે ? -
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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