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________________ १७४ भगवतीमत्रे पंचिंदिय-जाव - परिणए किं संमुच्छिममणुस्सपंचिंदिय - जाव - परिण गम्भववतियमणुस्स-जाव-परिणए ?' हे भदन्त यद् द्रव्यं मनुष्यपञ्चेन्द्रिय यावत् औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत तत् किं संमूछिममनुष्यपंञ्चेन्द्रिययावत् - औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत भवति ? गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्य-यावत्-पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायपयोगपरिणतं भवति ? भगवानाह'गोयमा ! दोसुवि' हे गौतम ! मनुष्यपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणतं द्रव्यं द्वयोरपि संमूछि ममनुष्य यावत्-परिणतमपि, गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्ययावत् परिणतंचापि भवति, गौतमः पृच्छति- 'जइ गव्भवतियमणुस्स-जाव होता है ऐसा जानना चाहिये । अब गौतमस्वामी प्रभुसे पूछते हैं 'जह मणुस्सप चिंदिय जाव परिणए किं संमुच्छिम मणुस्स पंचिंदिय जाव परिणए, गलवकंतियमणुस्स जाव परिणए' हे भदन्त ! जो द्रव्य मनुष्यपंचेन्द्रिय के औदारिक शरीरकायप्रयोगसे परिणत होते हैं वे क्या संमृच्छिम मनुष्यपचेन्द्रियके औदारिक शरीरकाय प्रयोगसे परिणत होते हैं ? था गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रियके औदारिक शरीरकायप्रयोगले परिणत होते हैं ? इसके उत्तर में पशु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'दोसु वि' मनुष्यपंचेन्द्रिययके औदारिक शरीरकाय प्रयोग से परिणत द्रव्य संमूच्छिम मनुष्यपंचेन्द्रियके औदारिक शरीरकाय प्रयोगसे भी परिणत होते हैं और गर्भज मनुष्य पचेन्द्रियके औदारिक शरीरकाय प्रयोगसे भी परिणत होते हैं। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'जइ गन्भवतियमणुस्स जाव परिणए कि તિર્યંચનિક પચેન્દ્રિય જીવોના ઔદારિક શારીરકાયપ્રયોગથી પણ પરિણત હોય છે, मेम सभvg. गौतम स्वामीन। प्रश्न- "जः मणुस्स पंचिदिया जाव परिणए कि संधुच्छिम मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए, गम्भवतिय सणुस्स जाव परिणए ?" હે ભદન્ત ! જે દ્રવ્ય મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરકાયપ્રયોગથી પરિણત હોય છે, તે શું સંમૂછિમ મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયના દારિક શરીરકાયપ્રયોગથી પરિણત હોય છે કે ગર્ભજ મનુષ્ય પંચેન્દ્રિયના ઔદારિક શરારકા પ્રયોગથી પરિણત હોય છે ? उत्तर-- गोयसा" हे मातम ! " दोस वि" भनुष्य ५येन्द्रियना मो२ि४ શરીરકાયપ્રયોગથી પરિણત દ્રવ્ય મૂછિમ મનુષ્યપ ચેન્દ્રિયના ઔદારિક શરીરકામગપરિણત પણ હોય છે અને ગર્ભજ મનુષપચેદ્રિયના દારિક શરીરકાયપ્રયોગ પરિણત પણ હોય છે. गौतम २वाभाना प्रश्न- " जइ गम्भवक तिथ मणुस्स जाव परिणए कि
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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