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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ १३ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् १४३ यदि-मृषामनःप्रयोगपरिणतं किम् आरम्भमृषामनःप्रयोगपरिणतं वा, एवं यथासत्येन, तथा मृपाऽपि । एवं सत्यमृपामनःमयोगपरिणतेनापि, एवम् असत्यमृपामनःप्रयोगपरिणतेनापि । यदि वचःप्रयोगपरिणतं किं सत्यवचःप्रयोगपरिणतम्, मृपावचःप्रयोगपरिणतम् ? एवं यथा-मनःप्रयोगपरिणतं तथा वचःप्रयोगपरिणतमपि, यावत्-असमारम्भवचःप्रयोगपरिणत वा ।। असमारंभमनः प्रयोगपरिणत भी होता है । (जइ मोसमणप्पओगपरिणए कि आरंभ मोसमणप्पओपपरिणए वा) हे भदन्त ! यदिवह एकद्रव्य मृषामनःप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह आरंभ कृपामनःप्रयोगपरिणत होता है ? (एवं जहा सचेणं तहा मोसेणावि) हे गौतम ! जैसा सत्यमनःप्रयोगपरिणतके विषयमें कहा गया है, उसो तरहसे सृषामनःप्रयोगपरिणतके विषय में भी जानना चाहिये । (एव सच्चामोसमणप्पओगेण वि, एवं असच्चामोसमणप्पओगेण वि) इसी तरहसे सत्यमृषामन:प्रयोगके विषयमें और असत्यामृषामन:प्रयोगके विषयमें भी जानना चाहिये (जइवथप्पओगपरिणए कि सच्चवयप्प ओगपरिणए मोसवयप्पओगपरिणए.) हे भदन्त यदि वह एकद्रव्य वचनमयोग परिणत होता है तो क्या वह सत्यवचनप्रयोगपरिणत होता है या मृषावचनप्रयोग होता है.। (एवं जहा मप्पणओगपरिणए तहा वयप्पओगपरिणए वि जाव असमारंभवयप्पओगपरिणएवा) हे गौतम ! जैसा मनः प्रयोगपरिणतके विषयमें कहा गया है वैसाही वचनप्रयो डाय छे (जइ मोममणप्पओगपरिणए किं आरंभ मोसमणप्पओगपरिणए वा ?) હે ભદન્ત ! જે તે એક દ્રવ્ય મૂષામનઃ પ્રયોગપરિણત હોય છે, તે શું તે આર ભ भूषामन: प्रयोगपरिणत डाय छ १ ( एवं जहा सच्चेणं तहा मोसणा वि) હે ગૌતમ! જેવુ સત્યમન પ્રયોગપરિણતના વિષયમાં કહ્યું છે, એવું જ કથન મૃષામનप्रयोगपरिणतना विषयमा ५१ सभा (एवं सच्चामोसमणप्पओगेण वि, एवं असच्चामोलमणप्पओगेण वि) में प्रभारी सत्यभूषामनः प्रयोगना विषयमा भने असत्याभूषामन: प्रयोगना विषयमा पY समj (जइ वयप्पओगपरिणए कि सच्चवयप्पओण परिणए, मोसवयप्पओगपरिणए ?) हे महन्त । न त मे દ્રવ્ય વચન પ્રગપરિણત હોય છે, તે શુ સત્યવચન પ્રગ પરિણત હોય છે, કે भृषावयन प्रयोगपरिणत डाय छे ? ( एवं जहा मणप्पओगपरिणए-तहा वयप्प ओगपरिणए वि जाव असमारंभवयप्पओगपरिणए वा) हे गौतम भन: પ્રગપરિણતના વિષયમાં કહ્યું છે, એવું જ વચન પ્રે રિણતના વિષયમાં પણ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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