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________________ T प्रमेयचन्द्रिका टीका श.६ उ.७ २.३ उपमेयकालस्वरूपनिरूपणम् लानि स एको दण्ड इति वा, धनुः इति वा, युगम इति वा, नालिका इति वा, मक्ष इति वा, मुशलमिति वा, अनेन धनुष्पमाणेन द्वे धनुःसहसे गन्यूतम् (क्रोशः) चत्वारि गव्यूतानि-(क्रोशाः) योजनम्, अनेन योजनप्रमाणेन यः पल्यो योजनम् आयाम-विष्कम्भेण, योजनम्, ऊर्ध्वम् उच्चत्वेन, तत् त्रिगुणं सविशेष परिरयेणं, स एकाहिकद्वयाहिक-ज्योहिक० उत्क' सप्तरात्र विहत्थी चउचीसं अंगुलाई रयणी, अडयालीसं अंगुलाइ कुच्छी) आठ लिक्षाओंकी एक यूका होती है आठ यूकाओंका एक यवमध्य होता है । आठ यवमध्योंका एक अंगुल होता है। इस अंगुलप्रमाण से ६ अंगुलोका एक पाद होता है । बारह १२ अंगुलोंकी एक वितस्ति, चौवीस २४ अंगुलों की एक रत्नि-हाथ, ४८ अंगुलों की एक कुक्षि (छन्नउइ अंगुलाणि से एगे दंडेइ वा, धणूइ वा, जुएइ वा, नालियाड वा, अक्खेइ वा, मुसलेइ वा) ९६ अंगुलों का एक दण्ड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष, अथवा मुसल होता है। (एएणं धणुप्पमाणे ] दो घणुसहस्साई गाउयं) इस धनुष प्रमाण से दो हजार धनुष का एक कोश होता है। (चत्तारि गाउयाई जोयणं) चार कोश का एक योजन होता है। (एएणं जोयणप्पमाणेण जे पल्लेजोयणं आयामवि क्खंभेणं जोयणं उड्ढं उच्चत्तणं, तं तिओणं सविसेसं परिरयेणं) इस योजनप्रमाणसे जो पल्य आयाम और विष्कंभसे एक योजनका एए णं अंगुलपमाणेणं ६ अंगुलाइ पाए, वारस अगुलाई विहत्थी, चउवीस भंगुलाई रयणी, अडयालीसं अंगुलाइ कुच्छी) माठ सिक्षामो (भीमा)नी । () થાય છે, આઠ યૂકાઓનું એક યવમધ્ય પ્રમાણ થાય છે, આઠ યવમથ્ય પ્રમાણનું એક અંગુલપ્રમાણ થાય છે, એવા છ અંગુલ પ્રમાણોનું એક પાદ થાય છે બાર અંગુલેની એક વિતપ્તિ થાય છે. ૨૪ અંગુલેની એક ર7િ (હાથ) થાય છે. '४८ मसुखोनी से अक्षि थाय छ, (छन्नउइ अंगुलाणि से एगे दंडेइ वा, घण्इ वा, जुएइ वा, नालियाइ वा, अक्खेइ वा, मुसलेइ वा) ૬ અંગુલેને એક દંડ, ધનુષ, યુગ, નાલિકા, અક્ષ અથવા મુસલ થાય છે. (एए ण धणुप्पमाणे णं दो घणुसहस्साई गाउयं) महीने धनुष प्रमाण मतान्यु छ सवा १२ धनुषन से 16 (A) थाय छ. (चत्तारि गाउयाइ जोयणं) यार औशन मे योरन थाय छे. (एए ण जोयणप्पमाणेणं जे पल्ले आयाम जोयणविक्खंभेणं ज़ोयणं उड्ह उच्चत्तेणं, तंतिओणं सविसेसं परिरयेण) આ જન પ્રમાણની અપેક્ષાએ જે પલ્ય (કુવો) એક જન લાંબે, એક જન પહોળો
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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