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________________ 1 ७६३ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. ९ सू.५ वरुणनागनप्तृकवर्णनम् सन् संस्तारकम् आरुह्य पूर्वाभिमुखः संपर्यङ्कनिषण्णः = पर्यङ्कासनोपविष्टः करतल - यावत्[- शिरआवर्त्त मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा एव = वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादोत- 'नमोत्थु र्ण अरिह ताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोत्थुणं समणस्स, भगवओ, महावीरस्स' नमोऽस्तु खलु अर्ह पो भगवद्भ्यो यावत् सिद्धिगतिनामधेयं स्थानम संप्राप्तेभ्यः, नमोऽस्तु खलु श्रमणाय भगवते महावीराय । 'आइगरस्स, जीव संपाविउकामस्स, मम धम्मायरियस, धम्मोव देसगस्स' आदिकराय तीर्थंकराय यावत- सिद्धिगतिनामधेय स्थान संप्राप्तकामाय मम धर्माचार्याय, धर्मोपदेशकाय । मोsस्तु इति पूर्वेण सम्बन्धः, 'वदामि त भगवत, तत्थगय इहगए' और उस दर्भ संथारे (दर्भ के आसन पर बैठ कर उन्होंने अपने मुखको पूर्वदिशा की ओर कर लिया और पर्यङ्कासन से बैठ कर दोनों हाथोंको जोडकर आवर्तन किया शिरोवर्तन करके उन्होंने इस पाठका उच्चारण किया 'नमोत्थुणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स, आइगरस्स जाव संपाविउकामस्स, मम धम्मायरियस धम्मोपदेसगस्स' यावत् सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त हुए सिद्ध भगवन्तोंको नमस्कार हो तथा श्रमण भगवान् महावीर के लिये नमस्कार हो जो आदिकर हैं और तोर्थ आदिके कर्त्ता हैं, यावत् सिद्धिगति नामक स्थानको मास करने वाले हैं । धर्मोपदेशक मेरे धर्माचार्यके लिये नमस्कार हो 'वंदामि तं भगवंत 'दव्भसंथारगं दुरुहित्ता पुरत्याभिमुद्दे सपलियंकनिसन्ने करयल जाव कट्टु एवं वयासी' हर्भासन उपर मेसीने तेमाणे पूर्व हिशा तर पोतानु भुम રાખ્યુ અને પ કાસને બેસીને બન્ને હાથને જોડીને આવન પૂર્ણાંક આ પ્રમાણે કહ્યું'नमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोत्थूणं समणस्स भगवओ महावीरस्स, आइगरस्स जाव संपाविउकामस्स, मम धम्मायरियस्स धम्मोपदेसगस्स, ' * સિદ્ધિગતિ નામને સ્થાને ગયેલા અંત ભગવંતાને નમસ્કાર હા. શ્રમણ ભગવાન મહાવીર કે જેએ તીર્થંકર છે અને સિદ્ધગતિમાં જવાના છે, તેમને મારા नभस्डर है।. भारा धर्भेथहेश मते धर्भायाने भाग नभ२४२ । 'वंदामि तं भगवत
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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