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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ९ सू. ५ वरुणनागनष्टकवर्णनम् ७२७ " मोइए मोएत्ता तुरए विसज्जेइ, तुरए विसज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, दब्भसंथारगं संथरित्ता दव्भसथारगं दूरुहइ, दब्भसंथारगं दूरुहित्ता पुरस्थाभि संपलियंकनिसन्ने करयल जावकट्टु एवं वयासी- नमोत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स, आइगरस्स, जाव संपाविउकामस्स, मम धम्मायरियस्स, धम्मोवदेसगस्स, वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मं से भगवं तत्थ गए जाव वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी - पुद्धिं पि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पञ्चखाए जावजीवाए, एवं जाव थूलए परिग्गहे पञ्चक्खाए जावज्जीवाए, इयाणि पिणं अहं तस्सेव भगवओ महावीरस्स अंतिए सवं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, एवं जहा खंदओ जाव - एयं पिणं चरमेहिं ऊसास - नीसासेहिं वोसिरामित्तिक सन्नाहपट्टे मुयइ, सन्नाहपहं मुइत्ता सल्लुद्धरणं करेइ, सल्लुद्धरणं करेत्ता, आलोइयपडिक्कते, समाहिपत्ते, आणुपुवीए कालगए । तर पं तस्ल वरुणस्स णागणन्तु यस्स एगे पियबालवयंसए रहमुसलं संगामं संगामेमाणे एगेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे अत्थामे अबले जाव - अधारणिजमिति कट्टु वरुणं णागणत्तुयं रहमुसलाओ संगामाओ पडिणिक्खमाणं पासइ, पासित्ता तुरए निfoves तुरए निगिoिहत्ता जहा वरुणे जाव तुरए विसजित्ता पडसंथारगं दूरुहइ, पडसंथारगं दूरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे जाव
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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