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________________ - - ७२२ भगवतीमत्रे कालं कृत्वा कुत्र गताः ? कुत्र उपपन्नाः ? भगवानाह-'गोयमा ! तत्थ णं दस साहस्सीओ एगाए मच्छीए कुच्छिमि उववनाओ' हे गौतम ! तत्र खलु पण्णवतिलक्षेपु मध्ये दश साहस्यः एकस्या मत्स्याः कुक्षी उदरे उपपन्नाः, 'एगे देवलोएसु उववना' एके कतिपयाः देवलोकेषु उत्पन्नाः 'एगे सुकुले पञ्चायाया' एके कतिपयाः सुकुले उत्तमवंशे प्रत्यायाता: समागताः समुत्पन्ना इत्यर्थः 'अवसेसा ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएम उववन्ना' अवशेषाः 'ओसन्न' इति पायो वाहुल्येन नरक-तिर्यग्योनिकेपु उपपन्नाः । गौतमः पृच्छति'कम्हा णं भंते ! सक्के देविदे देवगया, चमरे य अमुरिंदे अमुरकुमारराया से रहित थे, रुष्ट-रोप से भरे हुए थे, परिकुपित-क्रोध से युक्त हुए थे, अतः ये सबके सब युद्ध में सर कर शान्तभाव से रहित अवस्था में काल अवसर काल कर कहां पर गये ? कहां पर उत्पन्न हुए ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'तत्थ णं दससाहस्तीओ एमाए भच्छीए कुच्छिसि उववनाओ' स्थानुसल संग्राम में जो ९६ लाख मनुष्य मारे गये हैं उनमें से दश १० हजार मनुष्य तो एक मछली की कूख में उत्पन्न हुए 'एगेदेवलोएसु उबवन्ना' कितनेक देवलोकोंमें उत्पन्न हुए, 'एगे मुकुले पञ्चायाया' फिननेक मनुष्य उत्तम वंशमें उत्पन्न हुए 'अवसेसा ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिसु उववन्ना' बाकी के और सब मनुष्य प्रायःकरके नरकयोनि और तिर्यञ्चयोनि इनमें उत्पन्न हुए । अब गीतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'कम्हाणं भते ! सक्के देविंदे देवराया, चमरेय असुरिंदे असुरकुमारराया कूणियरन्नो साहेजं કીધયુકત હતા અને ઉપશાન્ત અવસ્થાથી રહિત હતા. તે એવી પરિસ્થિતિમાં કાળનો અવસર આવતી કાળ કરીને તેઓ કયાં ગયા હશે ?- કઈ ગતિમાં ઉત્પન્ન થયા હશે? ___Gत्त- 'गोयमा!' हे गीतम! 'तत्थणं दससाहस्सीओ एगाए मच्छीए कुच्छिसि उपचन्नाओ' स्थभुशण स आममा २८६ सय भायुसेभार्या गया उता, तमांनी १० ६१२ माणुसे तो ये भासीनी एमे स्पन्न 241, 'एगे देवलोएम उववन्ना' eels वसोम उत्पन्न थया, 'एगे सकले पञ्चायाया' ८९४ मनुष्या उत्तमवशमा पन्न थया, 'अवसेसा ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएमु उपना' બાકીના બધાં મનુષ્ય મેટે ભાગે નરકનિમા અને તિર્ય ચનિમા ઉત્પન્ન થયા. वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुन । प्रश्न पूछे छे - 'कम्हा णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया, चमरे य अमरिंदे असुरकुमारराया कूणिय रनो साहेज
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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