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________________ ७१९ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ. ९ सू. ४ रथमुसलसंग्रामनिरूपणम् शत्रुं पराभवितुं प्रभुः = समर्थः, तथैव महाशिलाकण्टकसंग्रामत्रदेव यावत्स कूणिको राजा रथमुसलं संग्रामं संग्रामयमाणः नवमल्लकिनः, नवलेच्छ किनश्च काशी - कोशलकान् अष्टादश अपि गणराजान् हतमथितमवरवीरघातित - निपतित- चिह्नध्वजपताकान् कृच्छ्रप्राणगतान् दिशोदिशं प्रतिषेधितवान् = विद्रावितवान् । गौतमः पृच्छति - ' से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ रहमुसले संगामे ?' हे भदन्त ! अथ केनार्थेन कथं तावत् एवमुच्यते - रथमुसलः संग्रामः, तस्य संग्रामस्य 'रथमुसल' इति नामकरणे को हेतुः ? भगवानाह - 'गोयमा ! रहसणं संगामे हमाणे एगे रहे अणासए, असारहिए, समुसले' हे इस तरह से यहाँ पर अनुक्त सब कथन महाशिलाकंटक संग्रामकी तरहसे ही जान लेना चाहिये । यहां यावत् शब्दसे इस प्रकार समझाया गया है कि कूणिक राजाने रथमुसल संग्राम करते हुए नौ मल्लकियोंको जो कि काशी देशके गणराज थे तथा नवलेच्छकियोंका जोकि कौशलदेशके गणराज थे इन सब १८ गणराजोंको परास्तकर दिया इनकी सेनाके वीरों को नष्ट कर दिया- उनका मान मर्दित कर दिया उनकी बडी छोटी ध्वजाओं को जमीन पर पटक दिया. तथा कष्टगत प्राणवाला उन्हें बनाकर चारों दिशाओं में भगा दिया । 1 अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि-' से केणणं भंते ! एवं बुचर, रहमुसले संगामे' हे भदन्त ! इस युद्धका नाम ' रथमुसल ऐसा किस कारण से हुआ है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं 'गोमा' हे गौतम ! 'रहमुसलेणं संगामे वट्टमाणे एगे रहे अणासए, મૂકયા', આ કથન સુધીનું, મહાશિલાક ટક સગ્રામનુ સમસ્ત કથન અહીં પણ ગ્રહણુ કરવું અહી ધ્યાવત' પદથી નીચેના સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરાયે છે–રથમુસળ સંગ્રામમાં *ણિક રાજાએ કાશીના નવ મલજાતિના ગણરાજાઓને અને કૈાશલના નવ લિચ્છવી જાતિના ગણુરાજાઓને હરાવ્યા. આ રીતે તેમણે ૧૮ ગણરાજાએાને પરાજિત કર્યાં, તેમનું માનમન કર્યું, તેમની ધજા-પતાકાત્માને જમીનમાં રગદેળી, અને તેમને આ યુદ્ધમાં પેાતાના પ્રાણુ ખચાવવા પણ મુશ્કેલ થઇ પડયા, તેથી તેમણે ચારે દિશામાં नास लागरी भूडी. हवें गौतम स्वाभी भहावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे - 'से केणटुणं भंते! एवं बुच्च, रहमुमळे संगामे ?' बेलहन्त ! या युद्धने 'स्थमुसा संग्राम' मे નામ શા માટે આપવામાં આવ્યું છે ? તેના ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે કે'गोयमा !' के गीतभ! 'रहमुसले णं सगामे वट्टमाणे एगे रहे अणासए,
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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