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________________ ६५३ प्रमेयन्द्रिका टीका श.७ उ. ८ सू०३ संज्ञानिरूपणम् ५-मानसंज्ञा ६-मायास ज्ञा ७-लोभस ज्ञा ८-लोकस ज्ञा ९-ओघसंज्ञा १०, एवं यावत्- वैमानिकानाम् । नैरयिका दर्शावधां वेदनां प्रत्यनुभवन्तः विहरन्ति, तधथा- शीतम् १, उप्णम् २, क्षुधाम् ३, पिपासाम् ४, कण्डूम् ५, परतन्त्रताम् ६, ज्वरम् ७, दाहम् ८, भयम् ९, शोकम् १० ॥सू० ३॥ ____टीका-'कइ णं भंते ! सण्णाओ पण्णत्ताओ ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कति खलु कियत्प्रकाराः संज्ञाः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा! दस सन्नाओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! दश संज्ञाः प्रज्ञप्ताः, ता एवाह-'तंजहा-आहारसना १, ग्रहस ज्ञा ४, क्रोधसंज्ञा ५, मानसंज्ञा ६, मायासंज्ञा ७, लोभसंज्ञा ८, लोकसंज्ञा ९, और ओघसंज्ञा १० (एवं जाव वेमाणियाणं) इसी तरह से यावत् वैमानिकोंके जानना चाहिये । (नेरइया दसविहं वेय] पञ्चणुभवमाणा विहरंति-तं जहा-सीयं उसिणं, सुहं, पिवास, कंडु, परज्झं, जरं, दाहं, भयं, सोगं) हे भदन्त ! नारक जीव क्या इन दश प्रकार की वेदनाओंका अनुभव करते हैं ? जैसे शीतवेदना १, उष्णवेदना २, क्षुधावेदना ३, तृषावेदना ४, कंडू - खाजवेदना ५, परतंत्रतावेदना ६, ज्वरवेदना ७, दाहवेदना ८, भयवेदना ९, और शोकवेदना १० । _____टीकार्थ- जोव संज्ञी भी होते हैं । इस कारण सूत्रकार ने यहां संज्ञा संबंधी वक्तव्यता का कथन किया है- इसमें गौतम स्वामीने प्रभुसे ऐसा पूछा है- 'कइणं भंते ! सण्णाओ पणत्ताओ' हे भदन्त ! सज्ञाएँ कितने प्रकार की होती हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' () भानस ज्ञा, (७) भायास 11, (८) बालस II, (६) aasan मने (१०) माघस जा ( एवं जाव वेमाणियाणं) मे १ शेते यावत वैमानि पय-त समxg (नेरइया दसविहं वेयणं पचणुभवमाणा विहरंति-तंजहा- सीयं, उसिण, खुह, पिवासं, कंड, परज्झं, जरं, दाह, भयं, सोगं) ना२४ । २मास प्रहारनी हनाने। मनुल ४२ छ- (१) शीतना , (२) B हना, (3) क्षुधावहना, (४) तृषाहना, (५) वेहना (भूक्षी), (६) ५२ तावहना, (७) वरवहना, (८) हवेना, () यवना मने (१०) शवहना. ટીકાથ– જીવ સંસી પણ હોય છે. તે કારણે સૂત્રકારે અહીં સત્તા સંબંધી વકતવ્યતાનું કથન કર્યું છે– સંજ્ઞાને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને આ अभाले प्रश्न पूछे छ- 'कडणं भंते ! सन्नाओ पण्णत्ताओ? महन्त ! सज्ञासा 321 रनी हाय छ ! तेन त्तर मापता मडावीर प्रभु हे छे ४- 'गोयमा।"
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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