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________________ भगवती सूत्रे ६१४ 9 कर्मणाऽपि बलेनापि चीर्येणापि पुरुपकारपराक्रमेणापि, अन्यतरान् विपुलान् भोगभोगान् भुञ्जानो विहर्तुम्, तस्मात् भोगी भोगान् परित्यजन् महानिर्जरो महार्य aurat भवति ! आधोsवधिकः खलु भदन्त ! मनुष्यो यो भव्यः अन्यतरेषु देवलोकेषु ? एवमेव यथा छद्मस्थः ! यावत् महापर्यवसानो भवति । परमाधोऽधिकः खलु भदन्त ! मनुष्यः यो भव्यः तेनैव भवग्रहणेन ors भोग भोगाई सुजमाणे विहरित्तए) जो छद्मस्थ मनुष्य किसी भी देवलोक में देवरूपसे उत्पन्न होनेके योग्य होता है वह दुर्बल शरीर होता हुआ भी, कर्मद्वारा भी, बलद्वारा भी, वीर्यद्वारा भी और पुरुषकार पराक्रमद्वारा भी कितनेक विपुल भोगभोगों को भोगने के लिये समर्थ है | ( तम्हा भोगी, भोगे परिचयमाणे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ) इस कारण वह भोगी भोगोंका परित्याग करता हुआ महानिर्जरा और महापर्यवसानवाला होता है । ( आहोहिएणं भंते ! सणसे जे भविए अन्नयरेसु देवलोएस) हे भदन्त | आधोऽ aधिक नियतक्षेत्रको अवधिज्ञानद्वारा जाननेवाला अवधिज्ञानी मनुष्य जो किसी एक देवलोक में उत्पन्न होनेके योग्य है, वह क्या क्षीणभोगी होता हुआ पुरुषकार पराक्रम आदि द्वारा विपुल भोग भोगों को भोगने के लिये समर्थ है ? ( एवं चेव जहा छउमत्थे जाव महा पज्जवसाणे भवइ) हे गौतम ! छद्मस्थपुरुषकी तरह से ही आधोवधिक पुरुष के विषय में भी जानना चाहिये यावत् वह भी महापर्यवसान वित्त ) छस्थ मनुष्य | देवसोम्भा देव३ये उत्पन्न थवाने योग्य होय हे, તે શરીરમાં દુળતા આવવા છતા પણ કર્મધારા, મળદ્વારા, વી’દ્રારા, અને પુરૂષકાર पराभद्वारा डेंटला विद्युत भोग्य भोगाने भोगववाने समर्थ होय हे ( तम्हा भोगी, भोगे परिच्चयमाणे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ ) ते रोते भोगी ભાગેને પરિત્યાગ કરતા થકે મહાનિ રાવાળા અને મહાપ`વસાનવાળા મને છે. ( आणि भंते मणुसे जे भविए अन्नयरेसु देवलए ) महन्त ! અધા અવધિક નિયત ક્ષેત્રને અવધિજ્ઞાન દ્વારા જાણુના અધિજ્ઞાની મનુષ્ય કે જે કાઇએક દેવલાકમા ઉત્પન્ન થવાને ચેગ્ય હાય છે, તે શુ ક્ષીણભાગી ( દુ॰ળ શરીરવાળે ) થતા પુરુષકાર પરાક્રમ આદિદ્રારા ભાગ્ય ભાગને ભોગવવાને સમર્થ હેાય છે ખરા ? ( एवंचे जहा छ मत्थे जात्र महापज्जवसाणे भगड ) हे गौतम! अरे અધાવધિક મનુષ્યના વિષયમા પણ છદ્મસ્થ મનુષ્ય પ્રમાણે or થન समन्वु. " भडायर्यवसान वाणी मते छे. " ત્યા સુધીનુ સમસ્ત કથન ગ્રહણ કરવું.
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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