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________________ ६०८ __ भगवतीम्रो इंदिया एवं चेव' द्वीन्द्रिया अपि एवमेव एकेन्द्रियवदेव केवलं भोगिनो भवन्ति, नो कामिनः,तेपांश्रोत्रचक्षुणेन्द्रियाभावात्, किन्तु 'नवरं निभिदियफासिदियाइं पडुच्च भोगी' नवरं विशेषस्तु एतावानेव यत्-एकेन्द्रियापेक्षया द्वीन्द्रिया निड्वेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रिये प्रतीत्य अपेक्ष्य भोगिनो भवन्ति । 'तेइंदिया वि एवं चेव' त्रीन्द्रिया अपि एवमेव-द्वीन्द्रियवदेव, केवलं भोगिनो भवन्ति, नतु कामिनः, किन्तु ' नवरं घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाइं पडुच्च भोगी' नवरं विशेषो यत्-त्रीन्द्रियाः जोवाः घ्राणेन्द्रिय-जिवेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रियाणि प्रतीत्य: अपेक्ष्य भोगिनो भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'चउरिदियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! ही होते हैं। क्योंकि इन सब जीवोंके केवल एक स्पर्श न इन्द्रिय हो होती है । 'वेइंदिया एवं चेव' दो इन्द्रियजीव भी एकेन्द्रियजीवोंकी तरह केवल भोगी ही होते हैं कामी नहीं होते। क्योंकि इनमें श्रोत्र, चक्षु और घ्राण इनइद्रियोंका अभाव रहता है। 'नवरं जिभिदिय फासिदियाई पड्डुच्च भागी' अतः दा इन्द्रिय जीवों में जो भोगी पना प्रकट किया गया है वह स्पर्शन और रसना इन्द्रियको आश्रित करके कहा गया है। तेइंदिया वि एवंचेव' दो इन्द्रियजीवोंकी तरह ते इन्द्रिय जीव भी ऐसे ही होते हैं। अर्थात ते इन्द्रियजीवों में केवल भोगीपनाही है, कामीपना नहीं है और यह भोगीपना उनमें स्पर्शन, रसना एवं घ्राण इन्द्रिय को लेकर है। यही बात 'नवरं घाणिदिय, जिन्भिदिन फासिंदियाइं पड्डुच्च भोगी' इस सूत्रांश द्वारा स्पर्शन्द्रियन। समाव उय छ, तथा तभन लोगी या . वे दिया एवंचेव' શ્રીન્દ્રિય જીવો પણ ભેગી જ હોય છે, કામી હોતા નથી, કારણ કે તેમનામાં શ્રોત્ર ચક્ષુ અને પ્રાણ, એ ત્રણે ઈન્દ્રિયે નો અભાવ હોય છે, પરંતુ "णवरं निभिदियफासिंदियाई पड़च्च भोगी" तभनामा वा एन्द्रिय भने સ્પર્શેન્દ્રિયને સદભાવ હોવાથી તેઓ રસ અને સ્પર્શ સુખ ભોગવી શકે છે, તે કારણે तभने (हीन्द्रिय वनि) लागी या छ तेड दिया वि एवं चेव' त्रीन्द्रिय छ। પણ ભેગી જ હોય છે, કામી હોતા નથી તેન્દ્રિય જીવોમાં સ્પીન્દ્રિય, ધ્રાણેન્દ્રિય અને રસનાઈદ્રિયનો સદ્ભાવ હેય છે, તે કારણે તેમને ભેગી કહ્યા છે, તેમાં શ્રોત્રેન્દ્રિય અને ચક્ષુરિન્દ્રિયને અભાવ હોવાથી તેઓમાં કામી પણ સંભવી શકતું नया मे पात सूत्रधारे २मा सूत्रांशहा 42 ४२ छ-'णवरं घाणिदिय, जिब्भिदिय, फार्सिदियाइ पडुच्च भोगी' । वे गौतम २वामी महावीर प्रभुने वा प्रश्न पूछे छे , 'चउरिदियाणं પુછી હે ભદજ ! ચતુરિન્દ્રિય જીવો કામી હોય છે કે ભગી હોય છે ? તેને ઉત્તર
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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