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________________ ६५८ भगवती सूत्रे दुर्वणः, दुर्गन्धाः, दूरसाः, दुःस्पर्शाः, अनिष्टाः अकान्ताः यावत् - अमनोमाः, हीनस्वराः, दीनस्वराः, अनिष्टस्वराः यावत्- अमनोमस्वराः, अनादेयवचन प्रत्यायाताः, निर्लज्जाः, कूट-कपट कलह-वध-बन्ध-वैरनिरताः, मर्यादातिक्रमभाविभरत क्षेत्रीय मनुष्यावस्थावक्तव्यता 'तीसे णं भंते ! समाए भारहे वासे' इत्यादि । सूत्रार्थ - (तीसे णं भंते ! समाए भारहे वासे मणुयाणं केरिसए आगार भाव पडोयारे भविस्सह) हे भदन्त ! उसकालमें भरत क्षेत्र में मनुष्योंके आकार भानका आविर्भाव कैसा होगा ? अर्थात् भरत क्षेत्रकी वर्णादि पर्याय कैसी होगी ? ( गोयमा ) हे गौतम ! ( मया भविस्संति दुरुवा, दुवन्ना, दुग्गंधा, दुरसा, दुफासा अणिड्डा, अर्कता जाव अमणामा, हीणस्सग, दीणस्सरा अणिट्ठस्सरा, जाव अमणामस्सरा, अणादेजवयणपच्चायाया, निलज्जा, कुडकवडकलहवहबंधवेर निरया, मज्जायातिकमपहाणा) उस समय के मनुष्य ऐसे होंगे कि जिनकारूप खराब होगा, वर्ण खराब होगा, गंध खराब होगा, स्पर्श खराब होगा | वे अनिष्ट, अकान्त यावत् अमनोम मनको न रु ऐसे होंगे । उनका स्वर हीन, दीन, अनिष्ट और यावत् अमनोम होगा वचन उनके अनादेय और जन्म उनका निरर्थक होगा । वे बिलकुल लजारहित होंगे, फ्रूटनीतिमें, कपट करने में, कलहकरनेमें, ભાવિ ભરતક્ષેત્રીય મનુષ્યાવસ્થાની વકતવ્યતા— 'तीसे णं भंते! समाए भारदेवासे' त्याह सूत्रार्थ - (तीसे णं भंते ! समाए भारदेवासे मणुयाणं केरिसए अगरभाव पडोयारे भविस्सइ ? ) डे महन्त । ते दुःषभदुःषभा अणम भारत वर्षभां મનુષ્યેાના આકાર ભાવના આવિર્ભાવ કેવા હરશે ? એટલે કે તેમના શરીર, રૂપ, ગુણુ माहिनु स्व३५ ठेवुं ঙशे ? (गोयमा ! ) हे गौतम! ( मणुया भविस्संति दुरूवा, दुवन्ना, दुग्गंधा, दुरसा, दुफासा, अणिट्ठा, अकंता जाव अमणामा, हीणस्सरा, दीणस्सरा afgस्सरा जात्र अमणामस्मरा, अणादेज्जवयणपच्चायाया, निलज्जा, कुडकवड कलह - वहबंध - निरया, मज्जायातिक्कमप्पहाणा) ते सभयना मनुष्ये। ખરાબ રૂપવાળા, ખરાખ વણુ વાળા, ખરામ ગ ધવાળા અને ખરાબ સ્પર્શીવાળા હશે. तेगो शानिष्ट, अन्त, ( यावत् ) अमनाभ ( भनने गमे नहीं मेवा) हरी. तेभने। स्वर हीन, हीन, अनिष्ट ( यावत) अभनाभ ( भगुगभेो थाय भेवे। ) इश. तेमनां વચન અનાદેય હરો અને તેમનો જન્મ નિરર્થીક હશે. તેએ ખિલકુલ લજ્જા રહિત हुशे, मने इंटनीति, उट, सह, वध गंध भने शत्रुता करवामां सहा सीन रहेथे.
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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