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________________ - . ..... भगवतीसगे शाल्यादयः, "भवाला पल्लेबादयः, अङ्कुराः शाल्यादिवीजसूचयः, ते आदी येषां तान् च. आदिशब्दात् कदलीकमलादिकान्, तृणवनस्पतिकायिकान् वादरवनस्पतिमभृतीन् विध्वंसयिष्यन्ते विनाशं भापयिष्यन्ति, 'पचय गिरिडोंगर उत्थल-भाटिमादीए य वेयडूढगिरिवज्जे विदाविहिति' पर्वताःशैलाः, गिरयः पर्वतविशेषाः, डोंगरा: लघुपर्वताः; उत्रथलानि उन्नतानि धूलिस्थलानि उत्थलानि धूलिपर्वताः भ्रष्ट्राः-पांशुवजितभूमय; ते आदी येषां तांग आदिशब्दात् मासादशिखरादिकान् वैतादयगिरिवर्जान् वैतादयगिरिमुक्त्वा शेषात् सर्वान् विद्रावयिप्यन्ते विनाशयिष्यन्ति । 'सलिलविल-गहदुग्ग-विसम-निष्णु-न्नयाई च गंगासिंधुवज्जाइं समीकरेहिति' सलिलविलानि जलनिर्झरान्, गर्तान्, दुर्गाणि खातिकामाकारान्, विपमाणि-विषमभूमिक्षा, औषधियोंका, पल्लव आदिकों का, कदली कमल आदि शाली वगैरह बीज सूचियों का और बादर वनस्पति आदि रूप तृण वनस्पतिकाधिकों का विध्वंस होगा 'पवय-गिरि-डोंगर-उत्थलभट्टिमाईए य वेयगिरिवज्जे विरावेहिति' पर्वतों का, गिरियों का, डूंगरोंका, ऊंचे धूलियुक्त स्थानोंका-धूलि पर्वतोंका, पांशु (धूलि) वनित भूमिका, प्रासाद, शिखर आदि का, विनाश होगा, पर्वतादिकों में विनाश से केवल वैताढयगिरि ही बचा रहेगा, क्रीडाशैलों का नाम पर्वत है । पर्वत विशेषो का नाम गिरि है। लघु पर्वतों का नाम डूंगर है। पांशु-धूलिरहित भूमि का नाम भ्रष्ट्र है.। 'सलिलबिल गड्ढ-दुग्ग-विसमनिण्णुनयाई च गगासिन्धुवजाइं समीकरहिंति' गंगा और सिन्धु नदीको छोडकर बाकीके पानी झरने, खड्ढे, खातिका के प्राकार (खाईके पासके कोट) तथा विषम भूमिमें रहे हुए ऊचे नीचे ઓષધિનો, પાન આદિકનો, કદલી, કમલ આદિ બીજાને, અને બાદર વનસ્પતિ રૂપ આદિ તૃણ વનસ્પતિકાચિકને પણ વિનાશ થશે. 'पन्चय, गिरि-डोंगर-उत्थल-महिमाईए य वेयगिरिवज्जे विरावेहिति' પર્વતે, ગિરિઓને, ડુંગરાને, ધૂળયુકત ઊંચા ટેકરાઓનો ધૂળ રહિત ભૂમિને, પ્રસાદ, શિખર આદિને વિનાશ થશે તે વિનાશમાથી ફકત વૈતાઢયગિરિજ બચી જી. કીડાશૈલેને પર્વતે કહે છે, પર્વત વિશેષને ગિરિ કહે છે, નાના પર્વતને ડુંગરે કહે છે. धूणरहित भूभिने 'भ्रष्ट्र' छ 'सलिलविल-गट-दग्ग-विसमनिण्णुम्नयाई च गगासिंधुवज्जाई समीकरोहिंति , मने सिधुनही सिवायनी नही), ent ઝરણાઓ, ખાડા, ખાઈની પાસેના કેટ, તથા વિષમ ભૂમિકામાં રહેલાં ઊંચા નીચા
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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