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________________ मोनचन्द्रिका टीका. श.७. उ.५ भू.१ तिर्य ज्योनिसंग्रहस्वरूपनिरूपणम् ॥५०१ देवं भदन्त । तदेवं भदन्त ! इति ॥०१॥ सप्तमशतकस्य 'पञ्चम उद्देशः समाप्तः ।।७-५।। टीका-रायगिहे जाव एवं बयासी' राजगृहे यावत्-नगरे स्वामी समवसतः, समवसृतं श्रमणं भगवन्तं महावीरं शुश्रूषमाणो नमस्यन् अभिमुख विनयेन प्राञ्जलिपुटः पर्युपासीन: गौतमः एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अबादीत"खहयर-पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कइविहे जोणीसंगहे पण्णते ?' हे भदन्त ! खेचर-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्-योनिकानाम् कतिविधः योनिसंग्रहः योनिः जीवस्योत्पत्तिहेतुरूपा, तस्याः संग्रहो योनिसंग्रहः प्रज्ञप्तः कथितः ? भगवानाह(सेव भंते ! सेव भंते ! ति) हे भदन्त ! आपका कहा हुआ यह सब ही विषय सर्वथा सत्य ही है, हे भदन्त ! आपका कहा हुआ यह सब ही विषय सर्वथा सत्य ही है। इस प्रकार कह कर गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये। ___टीकार्थ- जीवका अधिकार चल रहा है, इसीले यहां सूत्रकारने उनका योनिसंग्रह विषयक कथन किया है. 'रायगिहे जाव एवं क्यासी' राजगृह नगरमें स्वामी आये. आये हुए श्रमण भगवान् महावीरकी सेवा शुश्रूषा करते हुए गौतम स्वामीने उनसे दोनों हाथ जोडकर नमस्कार कर इस प्रकारसे पूछा- 'खहयर पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं भंते! कहविहे जोणीसंगहे पण्णत्ते हे भदन्त ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिवालोंकी योनियोंका संग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? जीवोंके उत्पत्तिस्थानका नाम योनि है । इसके उत्तर में प्रसु उनसे कहते हैं कि dिgeट, मारमा विषयानुतमा प्रतिपादन ४२वामा माव्यु . ( सेवं भंते ! सेवं संते ! ति) “ महन्त! विषयमा प्रतिपादन थुते सवथा सत्य છે. હે ભદન્ત! આપનું કથન સર્વથા સત્ય છે. આ પ્રમાણે કહીને પ્રભુને વંદણ નસરકાર કરીને ગોતમ સ્વામી તેમને સ્થાને બેસી ગયા. A ટીકાથ– જીવનું પ્રતિપાદન ચાલી રહ્યું છે, તેથી સૂત્રકારે સૂત્રમાં તેમના भनिनड विषय ४थन युछ- रायगिडे जाव एवं चयासी रा नगरमा નહાવીર પ્રભુ પધાર્યા. લેકે ધર્મોપદેશ સાંભળવા આવ્યા. ધર્મોપદેશ સાંભળીને તેઓ પાત પિતાને સ્થાને ચાલ્યાં ગયાં. ત્યારે ગૌતમ સ્વામીએ બન્ને હાથ જોડીને પ્રભુને पायाभ२४२ ४ीम विनयपूर्व या प्रभारी प्रश्न पछया-खहयर पंचिदियतिरिक्खजाणियाणं भंते ! कईविहे जोणीसंगहे पण्णते? HEFT ! मेयर पयन्द्रिय "ચ નિવાળા જીની નિને સંગ્રહ કેટલા પ્રકારને કહ્યો છે? (જીવના ઉત્પત્તિ स्थानने योनि .) महावीर प्रभुलेछ :- “गोयमा!' 3 गीतम'! 'तिविह
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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