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________________ - प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.७ उ.३८.४ कृष्णलेश्यादेःकर्मणामल्पमहस्वनिरूपणम् ४४९ गौतमः पृच्छति-'सिय भंते ! नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए' हे भदन्त ! म्यात् कदाचित् किं नीललेश्यो नैरयिकः अल्पकर्मतरः, कदाचित किं कापोतलेश्यो नैरयिकः महाकर्मतरो भवेत् ? भगवानाह-'हंता, सिय' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् स्यात् कदाचित् नीललेश्यो नैरयिकः अल्पकर्मतरः कापोतलेश्यो नैरयिकश्च कदाचित् महाकर्मतरो भवेत् । गौतमस्तत्र पूर्ववदेव कारणं पृच्छति-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइनीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्ले नेरइए महाकम्मतराए ?' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन कथं तावत्-एवमुच्यते यत् स्यात्-नीललेश्यो नैरयिक: अल्पकर्मतरः स्यात्-कापोतलेश्यो नैरयिकः महाकर्मतरः ? भगवान् पूर्ववदेव अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'सिय भंते ! नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए' हे भदन्त ! ऐसा हो सकता है क्या कि नीललेश्यावाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला हो और कापोतलेश्यावाला नैरयिक कदाचित् महाकर्मवाला हो ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'हंता, सिय' हो गौतम ! नीललेश्यावाला नैरयिक कदाचित् अल्पकर्मवाला हो सकता है और कापोतलेश्यावाला नारक महाकर्मवाला हो सकता है। गौतमस्वामी प्रभुसे इस विषय में कारण पूछते हैं कि 'से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चा नीललेस्से अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारणसे कहते हैं कि नीललेश्यावाला नारक अल्पकर्मा होता है और कापोतलेश्यावाला नैरयिक महाकर्मा होता है ? इसके उत्तरमें प्रभु गौतम स्वामी महावीर प्रभुने मेवो न पूछे छे ?- 'सिय भंते नीललेस्से नेरइए अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए ? महन्त ! શું એવું સંભવી શકે છે કે નીલ લેસ્થાવાળે નારક જીવ અલ્પકર્મવાળે હોય અને કાપત લેશ્યાવાળે નારક છવ મહાકર્મવાળો હોય ? उत्तर- ता सिय' , गौतम! नीर श्यापा। ना२४ ४ ४५.२४ १९५કર્મવાળા હોઈ શકે છે અને કાપત લેસ્યાવાળે નારક છવ કયારેક મહાકર્મવાળે હાઈ श. गौतम स्वाभाना प्रभ- 'सेकेणढणं भंते ! एवं बुच्चइ - नीललेस्से अप्पकम्मतराए, काउलेस्से नेरइए महाकम्मतराए ?' महन्त ! मे मा५ શા કારણે કહે છે કે નીલલેશ્યાવાળે નારક ક્યારેક અલ્પકર્મ હોઈ શકે છે, અને કાત લક્ષાવાળે નારક કયારેક મહાક હોઈ શકે છે?
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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