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________________ ४३६ भगवतीसूत्रे फुडा' हे गौतम! इन्त सत्यं मूलानि वृक्षमूलभागाः : मूलजीवस्पृष्टानि मूल जीवैर्व्याप्तानि सन्ति कन्दा: = मूलोपरिभागरूपाः कन्दजीवैः स्पृष्टा व्याप्ताः सन्ति, यावत्करणात् -स्कन्ध-त्व-शाखा मवाल- पंत्र - पुष्प फलानि संग्राह्याणि, तत्र स्कन्धाः=येभ्यः शाखाः प्रस्फुटन्ति, ते स्कन्धजीवैः स्पृष्टाः ॥ त्वचः वृक्षत्वचः, तास्त्वग्जीवैः स्पृष्टाः । शाखा आयतप्रसृता वृक्षावयवाः 'डाली ' - इति प्रसिद्धाः, ताः शाखाजीवैः स्पृष्टाः । मवाला:- नवाङ्कुराः । पत्र - पुण्यफलानि प्रसिद्धानि तानि स्वस्त्रीवैः स्पृष्टानि, इति । वीजानि वीजजीवः -स्पृष्टानि सन्ति । गौतमः पृच्छति - ' जइ णं भंते ! मूला मूलजीब फुड़ा, कंदा कंदजीवफुडा जाव वीया वीयजीत्र फुडा' यदि खलु भदन्त । मूलानि मूलजीवकि वृक्षके मूल जडें मूलजीवोंसे स्पृष्ट हैं, कंद कंदजीवोंसे स्पृष्ट हैं यावत् स्कन्ध, त्वक्, शाखा प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल अपणेर जीवों से स्पृष्ट व्याप्त हैं । जिनसे शाखाएँ फूटती हैं निकलती हैं वे स्कन्ध है वे अपने स्कन्धजीवोंसे व्याप्त हैं, वृक्षकी छालका नाम त्वक् है ये अपने छालगतजीवोंसे स्पृष्ट है । लम्बी चौडी डालियोंका नाम शाखा है ये शाखाएँ अपने अन्दर रहे हुए जीवोंसे स्पृष्ट हैं । नवाङ्कुरोंकोपलोंका नाम प्रवाल है ये प्रबाल अन्दर रहे हुए जीवोंसे स्पृष्ट हैं पत्र, पुप्प और फल प्रसिद्ध ही हैं, सो ये भी अपने अन्दर रहे हुए जीवोंसे स्पृष्ट हैं। बीज बीजगत जीवोंसे स्पृष्ट हैं । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते है कि 'जइ णं भत्ते ! मूला मूलजीवफुडा, कदा कदनीवफुडा, जाव बीया बीग्रजी फुडा' हे भदन्त ! यदि कंदा कदजी फुडा, जाव बीया बीजी फुडा' वृक्षतो भूण भूजलवाथी स्पृष्ट (व्यास) होय है, उन्ह उन्ह वाथी व्यास होय, छे, स्मृन्ध (अड़), छात, शामी, अपणो, पत्र, ड्रेस, ईज़ा ने जी पशु अनुभे स्४न्धगत लवोथी, छासगत कवीथी, શાખાગત જીવાથી, કપળગત જીવાથી, પુષ્પગત જીવાથી, ફલગત જીવાથી અને ખીજગત वोथी स्पृष्ट होय छे. '२५न्ध' भेटले नेभांथी शाखाओ (अणीगो) छूटे छे मेवु थड. તે સ્કન્ધુ સ્કન્ધગત જીવાથી વ્યાપ્ત હાય છે વૃક્ષની ત્વચાને છાલ કહે છે. તે છાલ છાલગત જીવાથી વ્યાપ્ત હાય છે. લાંખી ડાળીઓને શાખાઓ કહે છે. તે શાખાઓ પણ શાખાગત જીવોધી વ્યાપ્ત હાય છે નવા અંકુરને પ્રવાલ અથવા કેપળ કહે છે, તે પ્રવાલ તેની અદ્ર રહેલા જીવાથી સ્પષ્ટ હોય છે પાન, ફૂલ અને મૂળ પણ પાપાતાની અદંર રહેલા વેધી પૃષ્ટ હાય છે, અને ખીજ ખીજગત જીવાથી પૃષ્ટ હાય છે. હવે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને એવા પ્રશ્ન પૂછે છે કે जणं भंते ! •
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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