SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 459
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - अधेयकन्द्रिका टीका श.७ उ.३ सू.१ वनस्पतिकायिकाहारनिरूपणम् ४२० टीका- चणस्सइकाइया णं-- अंते ! किं कालं सव्वापाहारगा, या, सन्नमहाहारगा चा भवंति ?' गौतमः पृच्छति-हे भवन्त ! वनस्पतिकारिकाः खलु कं कालं कस्मिन्, काले सर्वाल्पाहारकाः सलिएसम्पादल्पा-नान्यूनः आहारो येषां ते सर्वाल्पाहारा, न एक नवील्याहारका न्यूनानसराहारचन्तो भवन्ति ? अथ च कस्मिन् काले सर्वमहामारा: अधिकाधिक , तराहारका भवन्ति ? भगवानाह-गोयमा ! पाउसचन्सिारते हे गौना ! प्रवृतौ वर्षाऋतौ च खलु, 'एत्थ णं दणस्तकाच्या सव्यमबाहामा पनि अत्र स्खलु वनस्पतिकायिकाः सर्वमद्दाहारकाः भवन्ति, प्रापि पारा च उदा. स्नेहकबहुत्वात् महाऽऽहारता प्रतिपादिता, प्राकृट् च आपाद-श्राव बोध्यम्, वर्षारात्रोभाद्रपदाऽश्वयुजौ तत्र, 'तयाणंतरं च णं सर तदनन्तरम् प्रादयानन्न उसमें गौतम स्वामी प्रभुसे ऐला पूछ रहे हैं कि 'वणमास्याणं भने ! किंकालं मच्चप्पाहारगा वा सन्दमहाहारगा मनचंनि सदन्न ! दन. स्पतिकायिक जीव किस कालमें साम्पाहार-सब से बन आधार जिन्होंका ऐसे अर्यान न्यूनसे न्यूननर आनाबाल होने ? नया किस कालमें वे सर्व महानारक अधिकार अधिकतर माद्वारवाद होते हैं ? इसके उत्तग्में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोचमा गानय ! 'पाउसवरिसारचेसु पं प्राकृऋतुम और वर्षातुमें 'पन्य का काझ्या सव्वमहाहाग्गा भवंति बनम्पनिहारिक नाले अधिन्नर आहारबाले होते हैं क्यांकि प्राबृद्ध और वनातुने उदछ, जनककी घाहुलना रहती है इमलिचे महाहागनाला बनपानकारिक में पानगवन किया गया है । अपराह और श्रावणमान रे वास्तु के बहीन भुने - - मृणास्यकट्या मनःसिन्दामा वा, मनमहाहारगा का मनि? ! - सोया सय .. ॐ 3212 । २५. ४ मंगमा! 'पाउसदन्मिाद - 2 (.राय स्यामा मन्त्रमहादगा मन 24 , त भन्ने [., - ॐ..... * * तयातन मरद - 1... 2 warsixt--
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy