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________________ ३९८ भगवती सूत्रे संखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा' हे गौतम ! सर्वस्तोकाः सर्वेभ्योऽल्पाः मनुष्या मूलगुणप्रत्याख्यानिनः, उत्तरगुणप्रत्याख्यानिनस्तु मनुष्याः संख्येयगुणाः, अप्रत्याख्यानिनश्च मनुष्या असंख्येयगुणा भवन्ति, अन्येषां संख्यातत्वेऽपि संमूच्छिमानामप्रत्याख्यानिनामसंख्येयत्वात् गौतमः पृच्छति - 'जीवाणं भंते ! किं सव्वमूलगुणपचक्खाणी, देसमूलगुणपचक्खाणी, अपच्चक्खाणी ?' हे भदन्त 1 जीवाः खलु किम् सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानिन ? अथवा देशमूलगुणप्रत्याख्यानिनः ? अथवा अप्रत्याख्यानिनो भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! जीवा सव्वमूलगुणपञ्चक्खाणी, देसमूलगुण पचनक्खाणी, अपच्चक्खाणी चि' हे गौतम! जीवाः हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'सवत्थोवा मणुस्सा सूलगुणपच्चक्खाणी उत्तरगुणपच्चत्रवाणी संखेज्जगुणा, अपञ्चक्खाणी असंखेजगुणा' हे गौतम ! मूलगुणप्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे कम हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी मनुष्य संख्यातगुणे हैं और अप्रत्याख्यानी मनुष्य असंख्यातगुणें हैं। यहां जो अप्रत्याख्यानी मनुष्यों में असंख्यातगुणिता कही गई है, वह संमूर्च्छित मनुष्योंकी असंख्यातता को लेकर कही गई है, अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'जीवा णं भंते ! किं सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी' हे भदन्त ! जीव क्या सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी होते हैं ? देशमूलगुणप्रत्याख्यानी होते हैं ? या अप्रत्याख्यानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम! जीवा सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चवखाणी वि' जीव सर्व उत्तर- 'सन्वत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपचक्खाणी संखेज्जगुणा, अपचचखागी असं खेज्जगुणा' हे गौतम! भूसशुयुत्प्रयाण्यानी मनुष्यों સૌથી ઓછાં હાય છે, ઉત્તરગુણ પ્રત્યાખ્યાની મનુષ્ચા સંખ્યાતગણુા હાય છે અને અપ્રત્યાખ્યાની મનુષ્ય અસ ખ્યાતગણા હેાય છે. અહીં અપ્રત્યાખ્યાની મનુષ્યામાં જે અસ ખ્યાતગુણિતતા કહી છે, તે સમૂમિ મનુષ્ચાની અસ ંખ્યાતતાની અપેક્ષાએ કહી છે. गौतम स्वाभीनो प्रश्न- ' जीवाणं भंते । सव्वमूलगुणपञ्चकखाणी, देसमूलगुणपचक्रवाणी, अपचक्खाणी ?' हे लत! જીવશુંસમૂલગુણુ પ્રત્યાખ્યાની હાય છે, દેશભૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાની હાય છે કે અપ્રત્યાખ્યાની હાય છે ? उत्तर- 'गोयमा !' हे गौतम | 'जीवा सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपञ्चक्खाणी वि' लवो सर्वभूतगुणु प्रत्याख्यानी या होय छे, દેશભૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાની પણ હાય છે અને અપ્રત્યાખ્યાની પણ હાય છે. 1
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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